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*नैनीतालः प्रो. ललित तिवारी ने ‘मैरीगोल्ड से हर्बल उत्पाद’ पर छत्तीसगढ़ में दिया व्याख्यान*

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नैनीताल। कुमाऊं विश्वविद्यालय के निदेशक और विजिटिंग प्रोफेसर, प्रोफ. ललित तिवारी ने गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में आयोजित कार्यशाला में ‘मैरीगोल्ड से हर्बल उत्पादों के विकास’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दिया। इस दौरान, उन्होंने मेडिसिनल प्लांट्स के स्टेटस और वितरण पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

प्रोफ. तिवारी ने कहा कि मैरीगोल्ड का मूल मैक्सिको और अन्य अमेरिकी क्षेत्रों में है, जिसे पुर्तगालियों ने भारत में पेश किया। मैरीगोल्ड की 33 प्रजातियां होती हैं, जिनमें से ‘हजारी’ भी एक है। इसमें बेटा-कैरोटीन, लाइकोपीन, लूटीन, ज़ीज़ंथाइन, नियो कैंटीन, फाइलेन और अल्फा क्रिप्टोसेंथिन जैसे रासायनिक तत्व होते हैं, जो इसे हर्बल उत्पादों के लिए अत्यंत उपयोगी बनाते हैं। इसके अलावा, मैरीगोल्ड का उपयोग डाई बनाने में भी किया जाता है और इससे वैल्यू एडिशन भी प्राप्त होता है। इसका सिरप एंटी-एजिंग के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, जबकि इसके तेल का भी चिकित्सा में उपयोग होता है।

उन्होंने बताया कि फ्रांस, केन्या, ऑस्ट्रेलिया और भारत मैरीगोल्ड के प्रमुख उत्पादक देशों में शामिल हैं। इसके साथ ही, डॉ. तिवारी ने आठ प्रकार के ‘एंडेंजर्ड’ (संकटग्रस्त) पौधों का भी जिक्र किया, जिनमें से पांच पौधों की प्रजातियां अब संकट में हैं, और इनका संरक्षण आवश्यक है।

प्रोफ. तिवारी ने मेडिसिनल प्लांट्स के बढ़ते महत्व पर भी बात की, और बताया कि 2050 तक इस क्षेत्र का वैश्विक कारोबार 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और एक स्थायी कोष (कॉर्पस फंड) की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि सतत विकास में इन पौधों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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