उत्तराखंड
*तैयारी अधूरी, तबादलों में पारदर्शिता पर उठे सवाल*
उत्तराखंड में शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों के तबादले कानूनी उलझनों में फंसे हुए हैं। जबकि सामान्य तबादलों की अंतिम तिथि 10 जून तय है, लेकिन अधिकांश विभाग तय प्रक्रिया पूरी करने में असफल रहे हैं। इससे न केवल तबादला एक्ट की अवहेलना हो रही है, बल्कि कर्मचारियों के अधिकारों का भी हनन हो रहा है।
प्रदेश सरकार ने तबादला प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए तबादला एक्ट लागू किया था, जिसके तहत हर वर्ष मार्च से तबादलों की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में कार्यस्थलों का मानकों के अनुसार चयन, रिक्त पदों की जानकारी विभागीय वेबसाइट पर सार्वजनिक करना और पात्र कर्मचारियों से 20 अप्रैल तक ऐच्छिक स्थानों के विकल्प लेना अनिवार्य है। लेकिन वर्ष 2025 की प्रक्रिया में इन मानकों की अनदेखी की गई है।
सूत्रों के अनुसार कई विभागों ने न तो रिक्त पदों की सूची जारी की है और न ही कर्मचारियों से तबादला विकल्प आमंत्रित किए हैं। नतीजतन, तबादलों की प्रक्रिया ठप पड़ी है और कर्मचारी न्यायिक जटिलताओं में फंसे हुए हैं।
इस मुद्दे पर राजकीय शिक्षक संघ ने नाराजगी जताई है। संघ के प्रांतीय अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने कहा, “तबादला शिक्षकों का संवैधानिक अधिकार है। सरकार प्रक्रिया पूरी नहीं करती है तो शिक्षक आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।” उन्होंने बताया कि तबादला और पदोन्नति की मांग को लेकर राज्यभर के शिक्षक 16 जून को देहरादून स्थित शिक्षा निदेशालय में धरना देंगे।







