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उत्तराखंड

*श्री राम नवमी विशेष*

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ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम,
लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम,
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः।।

अग्नि जलाती है, सूर्य प्रकाशित करता है तथा चंद्रमा शीतल करता है।पर इन तीनों के सामर्थ्य की एक सीमा है जो श्री राम है ।
कष्टों को भोगते हुए, वियोग में रह कर भी अपने चहुं ओर सुख का प्रकाश जो फैलाए, वही है श्री राम। मंत्रों में महामंत्र है, यह नाम श्री राम। राम नाम की शक्ति अनंत है
मान्यताओं के अनुसार भगवान राम का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था. इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है.
राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ मन जाता है।
उस समय पांच ग्रह अपनी उच्चतम स्थिति में थे.
अधिकतर विद्वानों के मुताबिक, राम का जन्म अभिजीत मुहूर्त में हुआ था.

त्रेता युग के राम
जिसका अर्थ है ‘रुकना’, ‘स्थिर रहना’, ‘आराम करना’, ‘आनन्दित होना’, ‘प्रसन्न होना’.
राम शब्द संस्कृत के ‘रम्’ और ‘घम’ से मिलकर बना है. ‘रम्’ का अर्थ है ‘रमना’ या ‘समा जाना’ और ‘घम’ का अर्थ है ‘ब्रह्मांड का खाली स्थान’.
राम शब्द का अर्थ ही ‘सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व’ यानी ‘चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म जी’.
, राम भगवान विष्णु के अवतार हैं. तथा
राम शब्द का अर्थ ‘ऊंचा’, ‘उच्च’, ‘शांति’, ‘मनभावन’, ‘सुंदर’, ‘प्रिय’ भी होता है.
कई विद्वानों ने राम नाम का अर्थ ‘मनोज्ञ’ अर्थात ‘जो मन को जानने वाला हो’ राम जो आनंद लेने वाला हो या फिर जो संतुष्टि देने वाला हो वही राम है’.
भगवान राम ही है जो रामचंद्र, रघुनंदन, रामजी, रामकिशोरे, रामरज, रमेश, रामदेव, रामदास, रामचरण, रामचंद्रा, रामाया, रामानंद, रमोज ,
श्रीरामचंद्र, श्रीदशरथसुत, श्रीकौशल्यानंदन, श्रीसीतावल्लभ, श्रीरघुनंदन, श्रीरघुवर, श्रीरघुनाथ, काकुत्स्थ, राम पंडित, बोधिसत्व राम.
से भी जाने जाते है ।
राघव से “राम” जो – अग्नि बीज और अमृत बीज से बना है.
यह नाम मनुष्य के मन की आत्मा को शक्ति प्रदान करता है.
रामचंद्र – चंद्रमा के समान आनन्दमयी एवं मनोहर राम, रामभद्र – कल्याणमय राम, शाश्वत – सनातन राम, राजीवलोचन – कमल के समान नेत्रोंवाले. वाले है श्री राम । इस प्रार्थना के साथ की श्री राम सभी जीव धारी पर अपनी कृपा बनाए रखे । जय श्री राम।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।

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