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*उत्तराखंड में जलवायु अनुकूलन पर कुमाऊं विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन*

नैनीताल। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के यूजीसी-एमएमटीटीसी सभागार में सोमवार को “उत्तराखंड में जलवायु अनुकूलन” पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम ट्राई-इम्पैक्ट ग्लोबल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग, डी.एस.बी. परिसर के संयुक्त तत्वावधान में हुआ, जिसमें विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों पर अपने शोध और अनुभव साझा किए।

कार्यक्रम का उद्घाटन कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डी.एस. रावत, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. पी.सी. जोशी, कला संकायाध्यक्ष प्रो. रजनीश पांडे, संयोजक मनोज भट्ट और प्रो. ज्योति जोशी द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। इसके बाद कुमाऊँ विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया गया।

संगोष्ठी का संचालन संदीप चोपड़ा ने किया। इस अवसर पर प्रो. डी.एस. रावत, प्रो. पी.सी. जोशी, प्रो. रजनीश पांडे और प्रो. ज्योति जोशी को सम्मानित किया गया। प्रो. ज्योति जोशी ने उद्घाटन भाषण में जलवायु परिवर्तन को एक वास्तविक संकट के रूप में प्रस्तुत किया, जो खासकर उत्तराखंड में महिलाओं के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल रहा है।

ट्राई-इम्पैक्ट ग्लोबल के प्रतिनिधि श्री मनोज भट्ट ने जलवायु अनुकूलन के 360 से अधिक सफल उदाहरणों को दस्तावेजित करने की जानकारी दी और इन्हें डिजिटल मैप पर प्रदर्शित करने की योजना का उल्लेख किया। मुख्य वक्ता प्रो. पी.सी. जोशी ने वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा करते हुए हिमालयी क्षेत्रों पर इसके विशेष प्रभावों और पारंपरिक ज्ञान के महत्व पर जोर दिया।

कार्यक्रम के दौरान, कुलपति प्रो. डी.एस. रावत ने जलवायु अनुकूलन के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रयासों के लिए छह प्रमुख व्यक्तियों को सम्मानित किया, जिनमें श्री देवेन्द्र सिंह राठी, नेपाल सिंह कश्यप, कार्तिक पवार, आकांक्षा सिंह, नरेंद्र सिंह मेहरा और हिमांशु बिष्ट शामिल थे।

संगोष्ठी के पहले सत्र में, छह प्रगतिशील किसानों और उद्यमियों ने अपने नवाचारों और जलवायु अनुकूलन के प्रयासों को साझा किया। इनमें देवेन्द्र सिंह राठी ने मल्टी क्रॉपिंग और सोलर पंप के संयोजन से कृषि में बदलाव लाने का उदाहरण दिया, जबकि नेपाल सिंह कश्यप ने सौर ऊर्जा का उपयोग करके मत्स्य पालन को पर्यावरण अनुकूल बनाने की जानकारी दी। इसके अलावा, कार्तिक पवार, आकांक्षा सिंह, नरेंद्र सिंह मेहरा और हिमांशु बिष्ट ने जैविक कृषि, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और बायोगैस उत्पादन के क्षेत्र में किए गए अपने योगदानों का विवरण दिया।

 

द्वितीय सत्र में, विशेषज्ञों ने वनाग्नि प्रबंधन और पारिस्थितिकी संरक्षण पर चर्चा की। प्रो. आशीष तिवारी और प्रो. ललित तिवारी ने नए पर्यावरणीय संकटों और पारंपरिक वनस्पतियों की समय से पहले फलने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। प्रो. अनिल जोशी ने जलवायु परिवर्तन के लोक संस्कृति पर प्रभाव और ऐपण कला के संरक्षण की आवश्यकता को उजागर किया।

तृतीय सत्र में महिला सशक्तिकरण और पारंपरिक हस्तशिल्प पर ध्यान केंद्रित किया गया। डॉ. किरन तिवारी ने स्व-सहायता समूह ‘चेली आर्ट्स’ के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रयासों का वर्णन किया। इसके साथ ही, डॉ. छाया शुक्ला और प्रो. किरन बर्गली ने पर्यावरणीय शिक्षा और महिलाओं की भूमिका पर चर्चा की।

कार्यक्रम का समापन मनोज भट्ट द्वारा आभार व्यक्त करने के साथ हुआ, जिसमें कुमाऊँ विश्वविद्यालय, समाजशास्त्र विभाग और सभी विशेषज्ञों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद किया गया। प्रो. ज्योति जोशी ने मनोज भट्ट और प्रो. पी.सी. जोशी को आभार पत्र भेंट कर संगोष्ठी का समापन किया।

इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रमुख शिक्षाविदों, शोध छात्रों और स्थानीय विशेषज्ञों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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