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उत्तराखंड

*पंचायत चुनाव में भारी बदलाव, दिग्गज नेता चुनावी मैदान से बाहर*

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के नतीजों ने कई बड़े राजनीतिक चेहरे और खासकर बीजेपी के कद्दावर नेताओं के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं। इस बार मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए वंशवाद और राजनीतिक प्रभाव को खारिज कर दिया। तीन प्रमुख विधायकों के परिवारों की हार ने पार्टी नेतृत्व को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।

लैंसडाउन से बीजेपी विधायक दिलीप रावत की पत्नी नीतू रावत ने पौड़ी जिले से जिला पंचायत सदस्य पद का चुनाव लड़ा था। उनकी योजना थी कि जीत के बाद उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतारा जाएगा, लेकिन कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी ज्योति पटवाल ने 411 वोटों के अंतर से उन्हें हराकर सभी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। यह हार विधायक दिलीप रावत के राजनीतिक भविष्य के लिए भी बड़ा झटका मानी जा रही है।

अल्मोड़ा जिले के सल्ट विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक महेश जीना के बेटे करण जीना को भी क्षेत्र पंचायत चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। करण स्याल्दे ब्लॉक की बबलिया सीट से चुनाव लड़े, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया। यह हार महेश जीना के लिए आगामी 2027 विधानसभा चुनाव से पहले खतरे की घंटी साबित हो सकती है।

नैनीताल जिले की भवालीगांव जिला पंचायत सीट से बीजेपी विधायक सरिता आर्या के बेटे को भी चुनाव हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस समर्थित यशपाल आर्या ने उन्हें 1200 मतों के भारी अंतर से हराया। 2022 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं सरिता आर्या की इस हार ने उनके जनाधार पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

अल्मोड़ा जिले के भैंसियाछाना ब्लॉक से बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के मंडल अध्यक्ष संतोष कुमार राम और उनकी पत्नी पूजा देवी दोनों चुनाव हार गए। संतोष राम नौगांव सीट से 267 वोटों से तीसरे स्थान पर रहे, जबकि पूजा देवी डूंगरलेख सीट पर तीसरे नंबर पर रहीं। पार्टी के लिए यह हार चिंता का विषय बनी है।

चमोली जिले के रानों वार्ड से पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी, जो पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी हैं, इस बार बुरी तरह चुनाव हार गईं। राजेंद्र भंडारी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव लगातार घट रहा है।

नैनीताल जिले की रामड़ी आनसिंह सीट से बीजेपी प्रत्याशी और निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया को निर्दलीय प्रत्याशी छवि बोरा कांडपाल ने भारी मतों से हराया। यह हार बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का मसला बन गई है, जहां जनता ने नए चेहरे और नई सोच को तरजीह दी।

ये नतीजे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों को रणनीति बनाने पर मजबूर कर देंगे और उत्तराखंड की राजनीति में नए समीकरण बनने की संभावना बढ़ा देंगे।

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