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उत्तराखंड

1995 से लेकर अब तक 27 वर्षो का नैनीताल चिड़ियाघर का शानदार सफऱ, एशिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित हैं प्राणी उद्यान।

भूपेंद्र मोहन रौतेला-

नैनीताल। पहाड़ पर गूंजती शेर की दहाड़ साथ ही पक्षियों का कलरव और चारोंओर से भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य। अंतर्राष्ट्रीय ख्यात प्राप्त पर्यटननगरी नैनीताल के प्राणी उद्यान का यह नजारा देशी ही नहीं विदेशी-पर्यटकों को बरबस यहां आने का आमंत्रण देता है। आज ही के दिन वर्ष 1995में एशिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित इस प्राणी उद्यान का शुभारंभ उत्तरप्रदेश के तत्कालीन वन सचिव राजेन्द्र भौनवाल ने किया था। वर्ष 1995 में25 उच्च स्थलीय वन्य प्राणियों व फीजेट्स से शुरु हुए प्राणी उद्यान मेंअब इनकी संख्या बढ़कर 207 पहुंच गयी है। दूसरी ओर
अपने 27 वर्षो के सफर में इस प्राणी उद्यान के प्रति देशी-विदेशी
पर्यटकों का विशेष लगाव देखने को मिला है जो प्राणी उद्यान में दर्जआंकड़े खुद बयां करने के लिए काफी हैं।

बता दें समुद्र सतह से 2100 मीटर की ऊंचाई पर शेर का डांडा पहाड़ी में4.592 हैक्टेयर क्षेत्रफमें तल्लीताल बस स्टेशन से दो किमी.की दूरी परस्थित यह प्राणी उद्यान नैनीताल के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में गिना जाताहै। पालीथीन फ्री जोन वाले इस प्राणी उद्यान में स्थापना के वक्त वन्यप्राणियों की संख्या थी जो वर्तमान में बढ़कर पहुंच चुकी है। प्राणीउद्यान में बाघ, गुलदार, सांभर, रेड पांडा, हिमालय काला भालू, मारखोर,
मोर, मोनाल, ब्लू शिप समेत कई रंग-बिरंगी फीजेट्स हैं जो दर्शकों को बरबसअपनी ओर आकर्षित करते हुए बार-बार यहां आने का आमंत्रण देते हैं। इतना हीनहीं प्राणी उद्यान के प्रवेश गेट पर दो आर्टिफिशियल झरने भी हैं जो यहांआने पर्यटकों का स्वागत करते हैं। इसके अलावा बुरांश समेत कई वनस्पतियांजू परिसर में प्राकृतिक रुप से मौजूद हैं।

  • प्राणी उद्यान में जन सामान्य को वन्य जीवों के प्रति लगाव व प्रेम भावउत्तपन्न करने के मकसद से शुरु की गयी वन्य जीव अंगीकरण योजना के तहतवर्तमान में 14 पशु प्रेमियों ने प्राणी उद्यान में मौजूद भरल,गोल्डनफीजैंट,बंगाल टाईगर, गुलदार,रेड पांडा,मारखोर,मोनाल, लववर्ड,रोजरिंगपैराकिट,सनकनूर,मोर, हॉग डियर,सिल्वर फीेजेंट,रेड जंगल फाउल तथा चीरफीजेंट को अंगीकृत किया है। इसके साथ ही प्राणी उद्यान में नेचरइंटरपीटेशन सेंटर की स्थापना की गयी है जिसमें लोगों को धरती, मनुष्य,वन्य जीवों तथा पौधों की उत्पति का इतिहास, उत्तराखंड में पायी जानी वालीवनस्पतियों व वन्य प्राणियों, उनके रहन-सहन के साथ ही जंगलों में लगनेवाली आग के कारण व बचाव तथा वन्य प्राणियों के रैस्क्यू करने केतौर-तरीकों के बारे में जानकारियां सचित्र हासिल होती है। इन सबके अलावायहां पर हाल ही के महीनों में इंटरपीटेशन थियेटर की स्थापना कर वन्यप्राणियों से जुड़ी फिल्मों का प्रदर्शन भी होने लगा है।
    प्राणी उद्यान के निदेशक टी.आर.बीजू लाल के दिशा निर्देशन में प्राणीउद्यान के सभी अधिकारी व कर्मचारियों जी-जान से वन्य जीवों के संरक्षण वसंवर्धन में अपनी अहम भूमिका का निर्वह्न कर रहे हैं। प्राणी उद्यान केवन क्षेत्राधिकारी अजय सिंह रावत की मानें तो प्राणी उद्यान में स्नोलैपर्ड, मारखोर, रैड पांडा व ब्लू शिप का कुनबा बढ़ाए जाने के लिए देश केविभिन्न चिडिय़ाघरों से पत्राचार चल रहा है।

ये भी जानें –

नैनीताल। प्राणी उद्यान प्रबंधन से मिले आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष

2001-02 में 78695,
2002-03 मेें 84568,
2003-04 में 77285,
2004-05 में94962,
2005-06 में 1,12,307
,2006-07 में 1,28,880 पर्यटक जू में भ्रमण कोपहुंचे। इसी क्रम में 2007-08 में 1,40,766,2008-09 में 1,63,156,
2009-10 में 1,99,447,2010-11 में 1,77,437,
वर्ष 2011-12 में 202400,
2012-13 में 221292,
2013-14 में 178722,
2014-15 में 226747,
2015-16में 278893,
2016-17 में 301290,
2017-18 में 323661,
2018-19 में262375,
2019-20 में 251692,
2020-21 में 85076,
2021-22 में 136038
पर्यटकों ने जू का भ्रमण किया जबकि सत्र 2022-2023 (अप्रैल व मई)57603पर्यटक पहुंच चुके हैं।

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