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विशेष: आज ही के दिन 18 नवंबर 1839 को नैनीताल की धरती पर अंग्रेज व्यापारी पी. बैरन ने रखा था पहला कदम, नर सिंह थोकदार को झील में डुबाने की धमकी देखकर चीनी व्यापारी ने अपने नाम की थी सरोवर नगरी, फिर प्राकृतिक को पर्यटन से जोड़ने का बुना गया तानाबाना

 

रितेश सागर:

नैनीताल। सारी दुनिया में अपनी सुंदर की धमक रखने वाली सरोवर नगरी को ‘स्कन्द पुराण’ के ‘मानस खण्ड’ में त्रिऋषि सरोवर यानि तीन ऋषियों अत्रि, पुलस्क तथा पुलक की तप स्थली के रूप बताया गया हैं,मान्यता है ये तीनों ऋषि यहां इस स्थान से होते हुए हिमालय की तरफ जा रहे थे तभी उनको तेज प्यास लगने लगी परंतु यहां आसपास कहीं भी पानी नहीं मिला तब तीनो ऋषियों ने मानसरोवर झील का स्मरण कर जमीन पर गड्ढा खोदा देखते ही देखते हैं वह गड्ढा पानी से भर गया और तीनो ऋषियों ने अपनी प्यास बुझाई तब से कहा जाता हैं की इस झील का पानी मानसरोवर झील से आता है।

 

पौराणिक मान्यता के अनुसार नैनीताल ’64 शक्तिपीठों’ में से एक है जब भगवान शिव माता सती का क्षत-विक्षत अवस्था में कैलाश की तरफ जा रहे थे तब इस स्थान पर सती की बायीं ऑंंख गिरी थी तब से इसका नाम नैन-ताल पडा गया व बदलते समय का साथ धीरे धीरे नैनीताल के नाम से जाना जाने लगा, सरोवर केे उत्तरी छोर पर नयना देवी का मंदिर शक्तिपीठ के रूप में स्थापित है।

 

ब्रिटिश काल के दौरान अंग्रेजों ने कुमायूं, गढवाल पर सन् 1815 में कब्जा किया । अंग्रेजों के आधिपत्य के बाद ई. गर्डिन को 8 मई 1815 को कुमाऊं मण्डल के आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। 1817 में जी.जे. ट्रेल कुमायूं के दूसरे कमिश्नर नियुक्त हुए । ट्रेल नैनीताल की यात्रा करने वाले पहले यूरोपीय थे, लेकिन उन्होंने इस जगह की धार्मिक पवित्रता को देखते हुए अपनी यात्रा को ज्यादा प्रचारित नहीं किया ।

 

18 नवंबर सन् 1839 ई. में एक अंग्रेज व्यापारी पी. बैरन जो जिला शाहजहाँपुर में चीनी का व्यापार था इसी पी. बैरन नाम के अंग्रेज को पर्वतीय अंचल में घूमने का अत्यन्त शौक था। एक बार खैरना नाम के स्थान पर यह अंग्रेज युवक अपने मित्र कैप्टन ठेलर के साथ ठहरा हुआ था। प्राकृतिक दृश्यों को देखने का इसे बहुत शौक था। बैरन ne एक स्थानीय व्यक्ति से ‘शेर का डाण्डा’ यानि शेर का इलाका के बारे में सुना तो उससे रुका नहीं गया और व शेर का शिकार करने के लिए घनघोर जंगल पार कर इस क्षेत्र में पहुंचा और जब शेर का डांडा पहाड़ी पर खड़े होकर जब उसने नीचे नीली झील के प्राकृतिक दर्शन किए तो वह मंत्र मुक्त हो गया तब उसने तय कर , शाहजहाँपुर की गर्मी को छोड़कर नैनीताल की इन वादियों को आबाद करेगा।

 

 

पी. बैरन ‘पिलग्रिम’ के नाम से अपने यात्रा – विवरण अनेक अखबारों को भेजते रहते थे। बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा का वर्णन भी उन्होंने बहुत सुन्दर शब्दों में लिखा था। सन् 1841 की 24 नवम्बर को, कलकत्ता के ‘इंगलिश मैन’ नामक अखबार में पहले पहले नैनीताल के ताल की खोज खबर छपी थी। बाद में आगरा अखबार में भी इस बारे में पूरी जानकारी दी गयी थी। सन् 1844 में किताब के रुप में इस स्थान का विवरण पहली बार प्रकाश में आया था। बैरन नैनीताल के इस अंचल के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सारे इलाके को खरीदने का मन बना लिया,पी बैरन ने यहाँ के नर सिंह थोकदार से इस सारे इलाके को उन्हें बेचने की पेशकश की परन्तु उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया। बैरन इस अंचल से इतने प्रभावित था कि वह हर कीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाके को कब्जे लेना चाहता था,फिर एक दिन बैरन नर सिंह को नाव में बैठाकर ताल में घुमाने ले गया । और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नर सिंह पूरा इलाका अपने नाम करने को कहा वरना उसे डूबा देगा बैरन ने खुद अपने विवरण में लिखते हैं कि डूबने के भय से नर सिंह थोकदार ने स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कर दिये और यहॉँ से शुरू हुआ नैनीताल बसासात का प्रथम अध्याय।सन् 1842 में बैरन ने सबसे पहले पिरग्रिम नाम के कॉटेज को बनवाया था। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस सारे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1842 ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी सुन्दरता की धाक जम गयी।

 

नैनीताल में पर्यटक पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सन् 1847 तक यह एक लोकप्रिय पहाड़ी रिज़ॉर्ट बन गया था। 3 अक्टूबर 1850 को, नैनीताल नगर निगम का औपचारिक रूप से गठन हुआ। यह उत्तर पश्चिमी प्रान्त का दूसरा नगर बोर्ड था। इस शहर के निर्माण को गति प्रदान करने के लिए प्रशासन ने अल्मोडा के धनी साह समुदाय को जमीन सौंप दी थी, इस शर्त पर कि वे जमीन पर घरों का निर्माण करेंगे। सन् 1862 में नैनीताल उत्तरी पश्चिमी प्रान्त का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय बन गया। गर्मियों की राजधानी बनाने के बाद शहर में शानदार बंगलों के विकास और विपणन क्षेत्रों, विश्रामगृहों, मनोरंजन केंद्रों, क्लब आदि जैसी सुविधाओं के निर्माण के साथ सचिवालय और अन्य प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण हुआ । यह अंग्रेजों के लिए शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी बन गया, जो अपने बच्चों को बेहतर हवा में और मैदानी इलाकों की असुविधाओं से दूर शिक्षित करना चाहते थे।

 

आजादी के पश्चात उत्तर प्रदेश के गवर्नर का ग्रीष्मकालीन निवास नैनीताल मेंं ही हुआ करता था। छः मास के लिए उत्तर प्रदेश के सभी सचिवालय नैनीताल जाते थे। अभी भी उत्तराखण्ड का राजभवन एवं उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थित है ।

 

संकलन- प्रो. अजय रावत, नैनीताल का इतिहास, गूगल, जानकार व्यक्तित्व

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