उत्तराखंड
Promise Bank: कोविड की दूसरी लहर ने देश को दिया अनोखा ‘बैंक’, यहां रुपये नहीं वादों की है कीमत!
बिना बैंक अकाउंट का एनजीओ, धीरे-धीरे बन गया अभियान
इन्हीं नेकदिल लोगों का एक समूह है, जिसे इंडिया केयर्स के नाम से जाना जाता है। 4-5 लोगों के साथ शुरू हुआ यह अभियान, धीरे-धीरे एक ‘एनजीओ’ का रूप लेता चला गया। मगर इसके काम करने के तौर तरीके बाकी सभी एनजीओ से पूरी तरह अलग हैं। जहां आमतौर पर किसी एनजीओ का ईंधन डोनेशन होता है, तो वहीं इंडिया केयर्स में डोनेशन की कोई जगह नहीं है। इंडिया केयर्स का कोई बैंक अकाउंट तक नहीं है। आज इंडिया केयर्स के देशभर में वॉलंटियर्स हैं, जो बिना किसी निजी हित के इसके साथ जुड़े हुए हैं। इसके अलावा कई रिटायर्ड और सर्विंग आर्मी ऑफिसर्स, देशभर में फैले सीनियर आईएएस-आईपीएस, सेंट्रल सर्विस के कई अधिकारी, कई आईटी और निजी कंपनियों के प्रफेशनल्स इस इंडिया केयर्स के ‘वॉलंटियर्स’ हैं।
कोविड की दूसरी लहर ने दिया इस अनोखे ‘बैंक’ को जन्म!
इंडिया केयर्स को बने डेढ़ साल से ज्यादा हो गए हैं। ट्विटर पर इसका अकाउंट है। आमतौर पर ट्विटर पर कोई मदद की रिक्वेस्ट मिलने पर इंडिया केयर्स के वॉलंटियर्स स्थानीय अधिकारियों, नेताओं या जनप्रतिनिधियों के जरिए लोगों की मदद करते थे। मगर कोविड की दूसरी लहर के बाद लगा कि सिर्फ इतना काफी नहीं है। इस इंडिया केयर्स के ‘संरक्षक’ ओडिशा कैडर के सीनियर आईपीएस अधिकारी अरुण बोथरा हैं। मगर वह खुद को सिर्फ एक वॉलंटियर के तौर पर देखना पसंद करते हैं। अरुण बोथरा ने एनबीटी ऑनलाइन से बताया, ‘एक बार ट्विटर के स्पेस फीचर पर डिस्कशन के दौरान लगा कि देश में ऐसे कई लोग हैं जो अपने-अपने स्तर से लोगों की मदद करने की चाह रखते हैं, मगर उन्हें भरोसा नहीं है। उनका मानना है कि वे अगर किसी मदद के लिए कुछ कर रहे हैं, तो वह असली जरूरतमंद तक सीधे पहुंचना चाहिए।’ अरुण बोथरा ने आगे बताया, ‘यहीं से हमें एक ‘प्रॉमिस बैंक’ की जरूरत महसूस हुई। जून 2021 में शुरू हुए इस इनिशिएटिव का मकसद था कि उन लोगों का एक डेटाबेस बनाया जाए, जो लोगों की मदद करना चाहते हैं। इंडिया केयर्स के वॉलंटियर्स ने एक गूगल फॉर्म तैयार किया जिसमें सिर्फ कुछ चीजें पूछी जाती हैं कि वे कैश या काइंड किस तरह लोगों की मदद करना चाहते हैं।’
क्या है प्रॉमिस बैंक, कैसे करता है काम?
प्रॉमिस बैंक के डेटाबेस को इंडिया केयर्स के तीन वॉलंटियर्स देखते हैं और इसका लेखा-जोखा उन्हीं के पास रहता है। गुजरात के भावनगर निवासी और पेशे से सोल्यूशन आर्किटेक्ट नमन शाह ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में बताया, ‘प्रॉमिस बैंक को सात महीने से ज्यादा हो गए हैं और यह काफी संतोषजनक एक्सपीरियंस रहा है। प्रॉमिस बैंक का गूगल फॉर्म बेहद आसान रखा है हमने। हम लोगों से उनका नाम, मोबाइल नंबर पूछते हैं। इसके अलावा उनसे पूछते हैं कि वह किस चीज के लिए मदद करना चाहते हैं, जैसे- कोई किसी की दवा का खर्च उठाना चाहता है, कोई बच्चों की फीस या राशन का या किसी को इससे मतलब नहीं है, मगर उन्हें मदद करनी है। इसके अलावा उनका बजट और फ्रीक्वेंसी पूछते हैं यानी वे कितने रुपये तक या किस तरह मदद करना चाहते हैं और साल में कितनी बार इस तरह मदद करने के इच्छुक हैं।’
कैसे पता चलता है कि जिसे मदद चाहिए वह असल जरूरतमंद है?
नमन ने आगे बताया, ‘इन सात महीनों में अभी तक हमारे पास 500 से ज्यादा डिपॉजिटर्स रजिस्टर करवा चुके हैं। अभी तक हमें करीब 105 रिक्वेस्ट मिली हैं जिन्हें हमने वर्कआउट किया है।’ नमन ने बताया कि जब इंडिया केयर्स को कोई रिक्वेस्ट मिलती है तो उसे देशभर में फैले वॉलंटियर्स के नेटवर्क के जरिए ग्राउंड पर जाकर वेरिफाई किया जाता है। हम देखते हैं कि जिसे जरूरत है क्या वह असल में जरूरतमंद है? उनका बैकग्राउंड चेक करते हैं, देखते हैं कि जिस तक मदद पहुंचनी है उसकी माली हालत क्या है। सारे फैक्टर्स चेक करने के बाद ही हम डिपॉजिटर्स की लिस्ट देखते हैं और डिपॉजिटर्स के वादे के मुताबिक उनसे संपर्क करते हैं।
‘प्रॉमिस बैंक के डिपॉजिटर के भरोसे को बनाए रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी’
प्रॉमिस बैंक को देखने वाली टीम की एक अन्य कोर मेंबर रितु डागर दिल्ली में रहती हैं। पेशे से टीचर हैं। उन्होंने बताया कि इंडिया केयर्स के साथ शुरुआत से काम करने का मौका मिला। जिस दौर में लोग 10-20 रुपये की मदद करने का भी प्रचार करते हैं, उस दौर में इंडिया केयर्स के वॉलंटियर्स ने सेल्फेलेस सर्विस करके मिसाल कायम की है। मुझे और मेरे जैसे सैकड़ों वॉलंटियर्स को पता है कि हमें यहां हमें कुछ नहीं मिलना है, मगर दिन खत्म होने के साथ किसी की मदद करने के बाद जो संतुष्टि का भाव होता है वह कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। रितु ने बताया, ‘प्रॉमिस बैंक में एक डिपॉजिटर हम पर भरोसा करके कोई मदद करने का वादा करता है। उसका पैसा, उसकी मेहनत की कमाई और उसकी नेकदिली एक सही जरूरतमंद तक पहुंचे, यह हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।’ रितु ने बताया, ‘कई बार जो लोग समर्थ होते हैं, वह भी मदद मांगते हैं। मगर हमारा वॉलंटियर नेटवर्क इतना मजबूत है कि बैकग्राउंड चेक में ही हकीकत पता चल जाती है।’
कई बार डिपॉजिटर्स का इंतजार किए बिना मदद करने पहुंच जाते हैं वॉलंटियर्स
रितु ने बताया कि आमतौर पर जब भी किसी डिपॉजिटर से उनके वादे के मुताबिक मदद के लिए संपर्क किया, तो 95 फीसदी तक लोग तुरंत मदद के लिए तैयार हो गए। कई डिपॉजिटर्स तो ऐसे हैं जो एक बार मदद करने के बाद अपना टर्न ना होने के बावजूद फोन करते हैं और पूछते रहते हैं कि कोई जरूरत हो तो प्लीज बताएं! रितु ने कहा कि हालांकि कई बार ऐसी भी रिक्वेस्ट आती हैं जिनमें तुरंत मदद की जरूरत होती है। जैसे किसी को कहीं तुरंत राशन चाहिए, दवा चाहिए, ब्लड चाहिए, ऑक्सिजन की जरूरत है तो ऐसे में हम वॉलंटियर्स डिपॉजिटर्स की लिस्ट खंगालने की जगह खुद ही मदद करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
‘सिर्फ डिपॉजिटर्स ही नहीं मददगार, बनती चली जाती है मदद की एक चेन’
पेशे से एचआर प्रफेशनल और इंडिया केयर्स के जन्म में अहम भूमिका निभाने वाली सबिता चंदा प्रॉमिस बैंक के डिपॉजिटर्स, वॉलंटियर्स और अथॉरिटीज के बीच एक ब्रिज का काम करती हैं। सबिता ने एनबीटी ऑनलाइन से बताया, ‘इंडिया केयर्स के साथ काम करना बहुत की सुखद अनुभव रहा है। पिछले सात महीनों से जबसे ‘प्रॉमिस बैंक’ बना है, हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। प्रॉमिस बैंक में ऑन रेकॉर्ड हमारे पास भले ही 500 से ज्यादा डिपॉजिटर्स हों, मगर कई बार ऐसे केसेस आते हैं जिनमें वे लोग भी मदद करने के लिए सामने आ जाते हैं जो न हमारे डिपॉजिटर्स हैं और न ही वॉलंटियर्स।’
लद्दाख में 82 वर्षीय की पूर्व फौजी की मदद सबसे बड़ा उदाहरण
लद्दाख में एक पूर्व फौजी की मदद के केस का जिक्र करते हुए सबिता ने बताया कि कैसे इस बेहद मुश्किल काम में एक-एक करके कड़ियां जुड़ती चली गईं और पूर्व फौजी की मदद को करीब आधा दर्जन से ज्यादा लोग सामने आ गए। सबिता ने बताया, ‘ट्विटर पर हमें 82 वर्षीय पूर्व फौजी और युद्धबंदी रहे टी. नामग्याल के बारे में पता चला। नामग्याल 1962 के युद्ध के हीरो मेजर धन सिंह थापा के सहायक रहे थे। लद्दाख के सुदूर इलाके में बिल्कुल अकेले रह रहे थे और राशन, बिस्तर जैसी बेसिक जरूरतों से भी मरहूम थे। केस के लिए हमने आर्मी के एक बड़े अफसर से बात की। उन्होंने स्थानीय सीओ से हमें कनेक्ट किया और धीरे-धीरे करके मदद करने वालों की एक पूरी कड़ी बनती चली गई। मेघना गिरीश मैम ने मेजर अक्षय गिरीश मेमोरियल ट्रस्ट के जरिए बहुत मदद की और नामग्याल तक राशन, कपड़ों और आर्थिक मदद का इंतजाम कराया। मुंबई निवासी अजय ने नामग्याल के लिए सोलर लैंप भेजी। लद्दाख के होटल व्यवसायी अब्दुल मजीद गलवान ने नामग्याल के बिस्तर का प्रबंध किया और आर्मी ने बेड दिया।’
बच्चे को चाहिए थी वीलचेयर, ऑस्ट्रेलिया में बैठे मददगार ने गिफ्ट की खुशी!
सबिता ने बताया कि यह केस हमारे लिए बहुत इमोशनल था। यह टीमवर्क और लोगों की निस्वार्थ सेवा भावना का उदाहरण था। इसके अलावा हाल ही में एक बच्चे का केस हमारे पास आया। बच्चे के परिवार को एक वीलचेयर के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी। ऑस्ट्रेलिया निवासी एक डिपॉजिटर ने हमारे वॉलंटियर्स से संपर्क किया और वीलचेयर का इंतजाम करा दिया। उन्होंने रिक्वेस्ट की कि कहीं भी उनका नाम न बताया जाए। ऐसे बहुत से केस हैं, जो हमारे दिल के बेहद करीब हैं और यही कारण है कि धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ रहे हैं और हमें भी लोगों की मदद का एक ब्रिज बनने में खुशी महसूस हो रही है।