उत्तराखंड
*चेक बाउंस मामले में बड़ा फैसला, आरोपी दोषमुक्त* *अधिवक्ता पंकज कुलौरा की दमदार पैरवी के चलते मिला इंसाफ*
नैनीताल। न्यायालय ने एनआई एक्ट के मामले में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने केवल चेक बाउंस होने पर चेक देने वाले को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए चेक लेने वाले को यह साबित करना होगा कि उसने चेक विधिक कारण से लिया था।
नैनीताल के जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुबीर कुमार की अदालत ने इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एनआई एक्ट के तहत एक वर्ष की सजा एवं 10.3 लाख रुपये के अर्थदंड से दंडित एक आरोपित की सजा को निरस्त कर उसे दोषमुक्त घोषित कर दिया।
2016 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त संजय सिंह बोहरा ने अपने ही गांव के भुवन सुनरिया पर आरोप लगाया था कि उसने एक प्लॉट के लिए ₹11,99,623 की राशि उधार ली थी, जिसे लौटाने का वादा किया गया था। लेकिन समय सीमा बीतने के बाद भुवन ने केवल ₹1,500 ही लौटाए, जबकि शेष ₹10.99 लाख वापस नहीं किए।
इसके बदले भुवन ने 13 जनवरी 2022 को ₹10 लाख का हस्ताक्षरित चेक दिया, जो बैंक से अनादरित हो गया। मामला अदालत में पहुँचा, जहां निचली अदालत ने 18 अक्टूबर 2023 को भुवन सुनरिया को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दोष सिद्ध मानते हुए एक वर्ष के कारावास और ₹10,30,000 का अर्थदंड सुनाया।
भुवन सुनेरिया ने इस आदेश के खिलाफ अपील की। अधिवक्ता पंकज कुलौरा ने सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के दत्तात्रेय बनाम शरणप्पा मामले में हालिया फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि संजय बोहरा यह साबित नहीं कर पाए कि उन्होंने ₹11,99,623 की राशि भुवन को उधार दी थी, क्योंकि उनके बैंक स्टेटमेंट से उनकी आर्थिक स्थिति केवल ₹1.07 लाख की थी।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने बताया कि एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दोष सिद्धि के लिए धारा 118 और 139 के तहत लेन-देन को विधिक होना आवश्यक है। यानी गैरकानूनी कृत्य के लिए चेक का लेनदेन नहीं किया जा सकता। इस मामले में धारा 118 और 139 का खंडन हो गया, जिससे निचली अदालत के दोषसिद्धि के आरोप को निरस्त किया गया और भुवन सुनरिया को दोषमुक्त घोषित कर दिया गया।
बताया गया कि भुवन सुनरिया ने पहले से हस्ताक्षरित चेक किसी वाहन कंपनी को दिया था, जिसे बाद में धनराशि दर्ज कर बैंक में लगाया गया, और वह चेक अनादरित हो गया।
यह फैसला एनआई एक्ट के तहत चेक बाउंस के मामलों में महत्वपूर्ण सिद्धांतों को स्थापित करता है और भविष्य में इसी तरह के मामलों में कानूनी दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकता है।