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उत्तराखंड

गाँधी जी के आव्हान पर ‘कुली बेगार’ आंदोलन की युवा कमान संभाली थी उमराव सिंह बिष्ट ने। आज शताब्दी जयंती पर किया याद।

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रामनगर।नैनीताल जिले के हिम्मतपुर व्लाक में कुमायूं बारदोली के अग्रणी नेताओ में सुमार उमराव सिंह बिष्ट की जन्म शताब्दी समारोह बहुत धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर अनेक सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा जिले भर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों को भी आमंत्रित किया गया ।


सर्वप्रथम कुल पुरोहितों द्वारा स्वस्ति वाचन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। अपने संबोधन में उनके ज्येष्ठ पुत्र डा0 नरेंद्र सिंह बिष्ट ने अपने पिता के स्वतंत्रता आंदोलन के संस्मरणों को याद करते हुए कहा कि, 14 जनवरी 1921 को महात्मा गांधी जी के अंग्रेजो भारत छोड़ो के आह्वान पर कुमाऊं में बद्रीदत्त पांडे, विक्टर मोहन जोशी, हरगोविंद पंत, गोबिंद बल्लभ पंत आदि नेताओं के आह्वान पर यहां कुली बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू नदी में बहा दिया इस आन्दोलन की चिंगारी का असर सबसे पहले देघाट व सल्ट में देखने को मिला यहां इस प्रथा के खिलाफ नौजवान सड़कों पर आ गये सल्ट में इस आंदोलन की कमान पुरूषोत्तम उपाध्याय व लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने सम्भाली। छात्र नौजवानों की कमान युवा उमराव सिंह बिष्ट ने अपने हाथों में ली। जिसके कारण वर्ष 1941में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें मात्र 19 साल की उम्र मे जेल की सलाखों में पहुंचा दिया अल्मोड़ा जेल के अंदर उन्हेंं चक्की पीसने जैसी सश्रम कारावास की यातनाएं दी गईं। इन यातनाओं के बाद भी उनका किशोर मन टूटा नहीं बल्कि उसमें और निखार आया उनके इस जुझापन के कारण उन्हें यहां से बस्ती की जेल के लिए स्थानांतरित कर दिया वहां पर भी उन्हें सश्रम कारावास की सजा काटनी पड़ी आखिरकार 18 महीने की कठोर कारावास के बाद अंग्रेज सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा कहते हैं बस्ती जेल में उन्होंने उम्र की सजा काट रहे एक कैदी से कताई बुनाई का काम सीखा जेल से रिहा हो जाने के बाद बिष्ट ने चर्खा चलाकर कपड़े बुनने का काम अपने घर में भी शुरू कर दिया था।

आजादी के आंदोलन में बिष्ट की नेतृत्व क्षमता व जुझारूपन को देखते हुए कुमाऊं बारदोली के नायक रहे लक्षमण सिंह अधिकारी ने अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया। देघाट व सल्ट जैसे सुदूर ग्रामीण इलाकों में आन्दोलन के तेज होने से अंग्रेजी सरकार की चुलै हिलने लगी इस आंदोलन को कुचलने के लिए रानीखेत के एस डी एम जानसन ने करीब दो सौ से अधिक पुलिस के लाव-लश्कर के साथ सल्ट की ओर कूच कर दिया उनका काफिला भिकियासैंण के रास्ते पहले देघाट मेंं पहुंचा वहां पर उस समय एक बैठक चल रही थी जानसन ने निहत्थे

आन्दोलनकारिओं पर सीधे गोली चलाने के आदेश दे दिए जिसमें हरिकृष्ण उप्रेती व हीरामणि बडौला शहीद हो गए। इसके बाद पुलिस प्रशासन का यह जत्था क्वैरला, डंगूला होते हुए 5 सितंबर को खुमाड़ पहुंचा वहां पर भी उस समय बैठक चल रही थी गोरी सरकार के इस अधिकारी ने आन्दोलनकारिओं को गोलियों से छलनी कर दिया जिसमें खीमानंद व गंगा दत्त दो सगे भाइयों समेत चूड़ामणि व बहादुर सिंह मेहरा समेत कुल चार लोग शहीद हुए और दर्जनों लोग घायल हो गए इसके बाद यह आन्दोलन आग की चिंगारी की तरह पूरे उत्तराखंड में फैल गया इसके बाद अल्मोड़ा के ही जैंती व पौड़ी गढ़वाल में कई लोग शहीद हुए। इस समय पूरे देश में आजादी की हीरक जयंती को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है वहीं उमराव सिंह बिष्ट जी के परिजनों द्वारा इस महान देशभक्त की जन्म शताब्दी समारोह को देश की आजादी को अश्रुण रखने के लिए संकल्प दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस अवसर पर हुई व्याख्यान माला में वक्ताओं का ध्यान मुख्य रूप से स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन का दौर और मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर केन्द्रित रहा इस अवसर पर मुख्य रूप से शिक्षाविद दीवान सिंह नेगी, कामरेड आनन्द नेगी, तुला सिंह तड़ियाल, डॉ नरेन्द्र सिंह बिष्ट, तारा सिंह बिष्ट, दिलीप सिंह बिष्ट, नन्दन सिंह बिष्ट निखिलेश उपाध्याय गिरीश चंद्र भट, नवेंदु मठपाल, शोबन सिंह मावड़ी, बहादुर सिंह डंगवाल, भारत नन्दन भट्ट, देवेन्द्र भट्ट, राहुल डंगवाल, गिरधर मनराल आदि लोगों ने सम्बोधित किया। समारोह में सैकड़ों की तादाद में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजन व क्षेत्रीय जनता उपस्थित रही। बैठक का संचालन गिरीश चंद्र पांडेय ने किया।

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