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उत्तराखंड

*1880 की त्रासदी: नैनीताल का भूगोल और ऐतिहासिक फ्लैट्स का मैदान*

सरोवर नगरी नैनीताल में 1880 का भूस्खलन केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं था, बल्कि इसने शहर के भूगोल को बदलकर एक महत्वपूर्ण खेल मैदान का निर्माण किया। अल्मा की पहाड़ी से आए इस भूस्खलन ने भारी जनधन की हानि तो की, लेकिन इसके बाद बने मैदान ने नैनीताल को खेलों का एक नया केंद्र दिया।

खेलों का आरंभ

1880 से पहले, इस क्षेत्र में एक छोटा सा घास का मैदान था, जो अब नगर का केंद्र बिंदु बन चुका है। 1841 में शहर की बसासत के बाद, 1843 में अंग्रेजों ने नैनीताल जिमखाना की स्थापना की और विभिन्न खेलों का आयोजन किया। यहां क्रिकेट, फुटबॉल, और हॉकी के टूर्नामेंटों का भी श्रीगणेश हुआ। विशेष रूप से, नैनीताल जिमखाना द्वारा 1889 में आयोजित उत्तर प्रदेश रामपुर फुटबॉल प्रतियोगिता को दुनिया की तीसरी फुटबॉल प्रतियोगिता का गौरव प्राप्त हुआ, जो रामपुर के नवाब के सहयोग से प्रारंभ हुई।

समृद्ध खेल संस्कृति

आज भी, यह मैदान कई प्रमुख खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है, जैसे मोदी कप हॉकी टूर्नामेंट और अन्य फाइव ए साइड हॉकी प्रतियोगिताएं। झील किनारे स्थित इस मैदान पर सालभर खेल और अन्य गतिविधियां होती हैं।

जगदीश बवाड़ी, जो शहर के व्यापारी और खेल संघ से जुड़े हैं, बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद से हर स्वतंत्रता दिवस पर सीआरएसटी ओल्ड बॉयज क्लब की ओर से क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन होता है। यह प्रतियोगिता मैदान की सबसे पुरानी प्रतियोगिताओं में से एक है।

ओलंपिक का गौरव

इस मैदान ने ओलंपिक तक पहुंचने वाले खिलाड़ियों का भी घर बनाया है। ओलंपियन राजेन्द्र रावत और प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी सैयद अली ने यहीं खेलकर देश का नाम रोशन किया। सैयद अली को मेजर ध्यानचंद पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।

इसके अलावा, शरदोत्सव और पागल जिमखाना प्रतियोगिता, जो 50 साल से अधिक पुरानी है, भी इस मैदान पर आयोजित होती है। पर्यटन सीजन में, यह मैदान पार्किंग के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य सुरेश रैना और मोहित शर्मा जैसे मशहूर खिलाड़ी भी यहां खेल चुके हैं।

नैनीताल का यह खेल मैदान न केवल खेलों का केंद्र है, बल्कि यह इतिहास और संस्कृति का प्रतीक भी है। यह आज भी खेल प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है, जहाँ खेलों के प्रति प्रेम और समर्पण का अनुभव होता है।

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