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उत्तराखंड

*कांवड़ यात्रा मार्ग में नाख लिखने पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी रखी रोक*

दिल्ली बॉर्डर से हरिद्वार तक कांवड़ यात्रा के रूट पर रेस्तरां, ढाबों को मालिक का नाम लिखने के आदेश पर लगी सुप्रीम कोर्ट की रोक जारी रहेगी। अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अंतरिम रोक बने रहने का आदेश दिया। यह आदेश उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए जारी किया गया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले कांवड़ रूट पर आते हैं। यहां आदेश दिया जारी किया गया था कि रूट पर पड़ने वाले ढाबे, रेस्तरां और अन्य खाने पीने की दुकानों के मालिक अपना नाम एक बोर्ड पर जरूर लिखें। इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और अब उस रोक को जारी रखा है। यह आदेश 5 अगस्त तक जारी रहेगा और उसी दिन अगली सुनवाई होनी है।

वहीं शुक्रवार की सुनवाई से पहले यूपी सरकार ने नाम लिखे जाने के आदेश को सही ठहराते हुए एफिडेविट दिया था कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि शांति बनी रहे। यूपी सरकार ने कहा कि हम लोगों की आस्था का सम्मान करना चाहते हैं। इसलिए यह आदेश दिया गया।

इसके अलावा कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी ऐसा हुआ था। योगी सरकार की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके अलावा अदालत ने कांवड़ यात्रा के रूट पर नाम लिखे जाने वाले आदेश के समर्थन में दाखिल अर्जी को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने इस पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया। इस अर्जी में कहा गया था कि यह आदेश सही है और धार्मिक मान्यता के अधिकार और स्वतंत्रता को बनाए रखने वाला है।

यूपी सरकार की ओर से पेश सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाई गई रोक केंद्रीय कानून का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि फूड एंड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स ऐक्ट, 2006 कहता है कि किसी भी खाद्य सामग्री के विक्रेता को मालिक का नाम डिस्प्ले करना होगा। इसमें रेस्तरां, ढाबे और होटल आते हैं। उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का रोक का आदेश गलत है।

इस तर्क पर बेंच में शामिल जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने कहा कि ऐसा है तो फिर इस आदेश को किसी एक राज्य में ही क्यों लागू किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह साबित करिए कि ऐसा नियम सभी जगह लागू है। वहीं नाम लिखे जाने के खिलाफ दायर अर्जी का पक्ष रखने वाले अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीते 60 सालों से कांवड़ यात्रा ऐसे ही निकाल रही है। इस बार भी यदि इस तरह का आदेश जारी नहीं होता तो कांवड़ यात्रा में कोई दिक्कत नहीं आनी थी।

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