उत्तराखंड
*इस बार पौष पूर्णिमा बनने जा रही है बहुत ही महत्वपूर्ण। 25जनवरी को है पौष पूर्णिमा गुरु पुष्य योग एवं अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं इस दिन*
हमारे सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का बहुत महत्व है। वर्ष में कुल 12 पूर्णिमा आती है जिसमें पौष पूर्णिमा का बड़ा महत्व है क्योंकि सूर्य देव एवं चंद्र देव के मिलन का अद्भुत संगम पौष पूर्णिमा को होता है क्योंकि पौष मास सूर्य देव का मास है और पूर्णिमा तिथि चंद्र देव की तिथि मानी जाती है। इस बार पौष पूर्णिमा कुछ और अधिक महत्वपूर्ण बनने वाली है। जहां एक ओर इस दिन गुरु पुष्य योग बन रहा है इसके साथ ही अनेकों शुभ योग इस दिन बन रहे हैं इनमें गुरु पुष्य योग सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। यह योग तब बनता है जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र आ जाता है।
शुभ मुहूर्त
इस बार दिनांक 25 जनवरी 2024 दिन गुरुवार को पौष पूर्णिमा मनाई जाएगी इस दिन यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो इस दिन 40 घड़ी 38 पल अर्थात मध्य रात्रि 11:23 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी यदि पुष्य नक्षत्र की बात करें तो इस दिन दो घड़ी 48 पल अर्थात प्रातः 8:15 बजे तक पुष्य नक्षत्र रहेगा। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कर्क राशि में विराजमान रहेंगे। इस दिन महत्वपूर्ण अमृत सिद्धि योग भी बन रहा है यदि अमृत सिद्धि योग की बात करें तो इस दिन प्रातः 8:15 बजे से अगले दिन यानी 26 जनवरी 2024 को प्रातः 7:08 बजे तक अमृत सिद्धि योग भी रहेगा।
प्रिय पाठकों को जानकारी देना चाहुंगा कि अमृत सिद्धि योग कैसे बनता है?
अमृत सिद्धि योग वार और नक्षत्र के मिलने से बनता है। यहां पर कौन सा वार किस नक्षत्र में पड़ेगा, तो अमृत सिद्धि योग का निर्माण होगा। इसके बारे में बताया जा रहा है।
रविवार हस्त नक्षत्र
सोमवार – मृ्गशिरा नक्षत्र
मंगलवार – अश्विनी नक्षत्र
बुधवार – अनुराधा नक्षत्र
गुरुवार -पुष्य नक्षत्र
शुक्रवार – रेवती नक्षत्र
शनिवार – रोहिणी नक्षत्र
ऊपर बताए गए वार और नक्षत्र एक साथ मिलते हैं। तो अमृत सिद्धि योग का निर्माण होता है। चूंकि इस दिन गुरुवार और पुष्य नक्षत्र है इसलिए अमृत सिद्धि योग के साथ साथ गुरु पुष्य योग भी बन रहा है।
पूजा विधि
पौष पूर्णिमा के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर स्नान के बाद संकल्प लें। तदुपरांत किसी पवित्र नदी में स्नान करें। तदुपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर सर्वप्रथम सूर्य देव को अर्घ्य दें फिर मंत्र जाप करके कुछ दान अवश्य करें। इस दिन उपवास रखना बेहतर होता है। फिर पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा के समक्ष ध्यान या प्रार्थना करें। इस दिन सूर्य देव एवं चंद्र देव दोनों की उपासना करना महत्वपूर्ण है ऐसा करने से ग्रहों की बाधा शांत होती है और अनेकों वरदान प्राप्त होते हैं। इस तिथि को चंद्रमा संपूर्ण होते हैं सूर्य देव एवं चंद्र देव एक दूसरे के सम सप्तक होते हैं। इसलिए इस स्थिति पर जल और वातावरण में विशेष ऊर्जा आ जाती है।
लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी