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*संतान सुख एवं पुत्र प्राप्ति के लिए आवश्यक है पुत्रदा एकादशी व्रत।*इस बार दिनांक 21 जनवरी 2024 दिन रविवार को पुत्रदा एकादशी व्रत मनाया जाएगा।
*संतान सुख एवं पुत्र प्राप्ति के लिए आवश्यक है पुत्रदा एकादशी व्रत।
इस बार दिनांक 21 जनवरी 2024 दिन रविवार को पुत्रदा एकादशी व्रत मनाया जाएगा
*पुत्रदा एकादशी व्रत कथा।*
पौराणिक कथा के अनुसार पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं- हे भगवान! आपने सफला एकादशी का महत्व बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए की पौष शुक्ल पक्ष एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या है ?और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है।
भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है । इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान कोई दूसरा व्रत नहीं है। इस के पुण्य से मनुष्य तपस्वी विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी कथा में कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक श्रवण करो।
भद्रावती नामक नगरी में सुकेतु मान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। वह संतान न होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचते थे कि इसके बाद हम को पिंड कौन देगा। राजा को भाई बांधव धन हाथी घोड़े राज्य और मंत्री इनमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था।
वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा वह धन्य है। उसे इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है। अर्थात उसके दोनों लोग सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात दिन चिंता में लगा रहता था। एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मा घात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। 1 दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग व्याघ्र सूअर बंदर सिंह आदि सब भ्रमण कर रहे हैं हाथी अपने बच्चों और हथिनी के बीच घूम रहा है। इस वन में कहीं तो गीदड़ कर्कश स्वर में बोल रहे हैं। कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच विचार करने लग गया। इसी प्रकार आधा दिन व्यतीत हो गया। वह सोचने लगा कि मैंने बहुत से यज्ञ किए ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दुख प्राप्त हुआ क्यों?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दुखी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस हंस मगरमच्छ आदि बिहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े में से उतर कर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
राजा को देखकर मुनियों ने कहा हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है सो कहो। राजा ने पूछा महाराज आप कौन हैं? और किस लिए यहां आए हैं? कृपा करके बतलाइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन !आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है हम लोग विश्व देव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले हे राजन !आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय व्यतीत होने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और 9 महीने के पश्चात उसके 1 पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर यशस्वी और प्रजा पालक हुआ।
तब नंदन नंदन भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से बोले हे राजन !पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस महात्म्य को पढता है या सुनता है उसे पुत्र की प्राप्ति अवश्य होती है। और अंत में मोक्ष प्राप्त होता है।
तो बोलिए नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण की जय।
नारायण भगवान की जय पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर की जय।
*शुभ मुहूर्त*
इस बार दिनांक 21 जनवरी 2024 दिन रविवार को पौष मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी मनाई जाएगी। यदि इस दिन एकादशी तिथि की बात करें तो 30 घड़ी 43 पल अर्थात शाम 7:27 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन रोहिणी नामक नक्षत्र 51 घड़ी 40 पल अर्थात अगले दिन प्रात 3:50 बजे तक है तदुपरांत मृगशिरा नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि करण की बात करें वणिज नामक करण शून्य घड़ी 35 पल अर्थात प्रातः 7:24 बजे तक है सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे।
*लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।*