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उत्तराखंड

*सभी कार्यों में सफलता मिलती है सफला एकादशी व्रत से।*

पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार दिनांक 7जनवरी 2024 दिन शनिवार को सफला एकादशी मनाई जाएगी।

इस कथा के अनुसार नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि हे युधिष्ठिर! मैं दान स्नान तीर्थ तप इत्यादि शुभ कार्यों से इतने शीघ्र प्रसन्न नहीं होता हूं जितना शीघ्र एकादशी व्रत करने वाले से। एकादशी व्रत करने वाला मुझे प्राणों के समान प्रिय लगता है। पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम सफला एकादशी है। यह सब कार्यों को सफल बनाने वाली है। इसमें नारायण जी की पूजा होती है। ऋतु अनुसार फल फूल तथा धूप दीप इत्यादि से पूजन करना चाहिए। अब मैं एकादशी महात्म्य में की कथा भी कहता हूं प्रेम पूर्वक श्रवण करो।

सफला एकादशी व्रत कथा –
चंपावती नगरी में एक महिष्यमान नाम का राजा राज्य करता था। उसके 4 पुत्र थे। बड़े पुत्र का नाम लुम्पक था। वह बड़ा दुराचारी था मांस मदिरा पर स्त्री गमन वेश्याओं का संग इत्यादि कुकर्मों से संपूर्ण था। पिता ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। वन में एक पीपल का वृक्ष था जो भगवान को भी प्रिय था सभी देवताओं का क्रीड़ा स्थल भी वहीं था। ऐसे पतित पावन वृक्ष के सहारे लुम्पक भी रहने लगा फिर भी उसकी चाल टेढी ही रही। पिता के राज में चोरी करने चला जाता था। सैनिक उसे पकड़कर लाते और राजा का पुत्र होने के नाते छोड़ देते थे। 1 दिन पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी की रात्रि को उसने लूटपाट अत्याचार किया और सैनिकों ने वस्त्र उतारकर उसे वन को भेज दिया। बेचारा रात भर पीपल के पेड़ की शरण में आ गया।

इधर हिमगिरी पर्वत की पवन भी आ पहुंची लुम्पक पापी के सभी अंगों में गठिया रोग ने प्रवेश किया हाथ पांव अकड़ गए। प्रातः सूर्योदय होने के बाद कुछ दर्द कम हुआ पेट का गम लगा जीवों को मारने में आज वह असमर्थ था और वृक्ष पर चढ़ने की शक्ति नहीं थी। नीचे गिरे हुए फल बीन लाया और पीपल की जड़ में रखकर कहने लगा हे प्रभु इन फलों को आप ही भोग लगाइए मैं अब भूखा ही रहूंगा और भूख हड़ताल करके यह शरीर को छोड़ दूंगा। मेरे इस कष्ट भरे जीवन से मृत्यु भली है। ऐसा कहकर प्रभु के ध्यान में मग्न हो गया रात्रि भर उसे नींद ना आई। भजन कीर्तन प्रार्थना करता रहा परंतु प्रभु ने उन फलों का भोग न लगाया। प्रात:काल हुआ तो एक दिव्य अश्व आकाश से उतरकर उसके सामने प्रकट हुआ। और आकाशवाणी द्वारा भगवान नारायण कहने लगे तुम ने अनजाने से सफला एकादशी का व्रत किया है उसके प्रभाव से तेरे समस्त पाप नष्ट हो गए।

अग्नि को जानकर या अनजाने हाथ लगाने से हाथ जल जाते हैं ठीक इसी प्रकार एकादशी भूल कर रखने से भी अपना प्रभाव दिखाती है। अब तुम घोड़े पर सवार होकर पिता के पास जाओ तुम्हें राज मिल जाएगा। सफला एकादशी सर्व कार्य सफल करने वाली है प्रभु की आज्ञा से लुम्पक पिता के पास आया पिता ने उसको राजगद्दी पर बिठाकर आप वन में तप करने चले गए। लुम्पक के राज्य में प्रजा सब एकादशी व्रत विधि सहित किया करती थी। सफला एकादशी के महात्म्य को अश्वमेध यज्ञ से बढ़कर माना गया है। इसके अतिरिक्त इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य सफल हो जाता है। यहां तक की इस दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने सभी कार्यों में हमेशा सफल रहता है।

शुभ मुहूर्त-
इस बार सन 2024 में दिनांक 7 जनवरी 2024 दिन रविवार को सफला एकादशी व्रत मनाया जाएगा ।इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो 43 घड़ी 58 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:46 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन विशाखा नामक नक्षत्र 37 घड़ी 13 पल अर्थात रात्रि 10:04 बजे तक है। यदि योग की बात करें तो इस दिन शूल नामक योग 54 घड़ी पांच पल अर्थात अगले दिन प्रातः 5:28 बजे तक है सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव शाम 3:53 बजे तक तुला राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्र देव वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे।

पूजा विधि-
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत हो इस दिन स्नान किसी पवित्र नदी में अथवा स्रोत में करें यदि ऐसा संभव ना हो तो घर में ही जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। तदोपरांत स्वच्छ वस्त्र पहन कर पूजा घर में भगवान लक्ष्मी नारायण का षोडशोपचार पूजन करें। पूजा पूजा घर में या तुलसी वृंदावन के सामने भी कर सकते हैं। दशमी के शाम को भोजन करके कुल्ला करें नीम से दांतून करें ताकि अन्न का कोई भी अंश दातों में न रहे। तदुपरांत 24 घंटे तक निराहार रहे। एकादशी के दिन उपवास रखकर द्वादशी के दिन फिर शुभ मुहूर्त में प्रातः पारण करें। पारण के दिन ब्राह्मणों को दान करें। ऐसा करने से आप हमेशा अपने कार्यों में सफल रहेंगे। यदि संभव हो तो एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।
लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल (उत्तराखंड)

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