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उत्तराखंड

*पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रुक्मिणी जयंती मनाई जाती है।*

इस बार दिनांक 4 जनवरी 2024 को रुक्मिणी जयंती मनाई जाएगी। जानिए कथा शुभ मुहूर्त पूजा विधि एवं महत्व।
माना जाता है कि द्वापर युग में इसी तिथि पर देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। इसीलिए इसको रुक्मिणी जयंती या रुक्मिणी अष्टमी कहा जाता है। देवी रुक्मिणी भगवान श्री कृष्ण की पहली पत्नी है। वह भगवान की 16108 रानियों में श्रेष्ठ है।

धर्म ग्रंथों में देवी रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार बताया गया है जो भी व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी सहित उनके पुत्र प्रद्युम्न का पूजन करता है उसके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती। धन संपदा की अपार वर्षा हो जाती है। इस दिन व्रत एवं पूजा करने के इच्छुक जातक को चाहिए कि वह इस पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प लें। फिर किसी चौकी पर स्वर्ण निर्मित श्री कृष्ण रुक्मिणी एवं प्रद्युम्न की प्रतिमा स्थापित करें। गंध पुष्प अक्षत धूप दीप आदि से विधिवत पूजन करें। नैवेद्य के लिए विविध विधि से उत्तम पदार्थ को अर्पित करें। तदुपरांत 8 सुभाषिनी या सुहागन स्त्रियों को भोजन एवं दक्षिणा देकर आशीष प्राप्त करें।

रुक्मिणी अष्टमीव्रतकथा-
विदर्भ देश में भीष्मक नामक एक परम तेजस्वी और शकुनि राजा थे। उनकी राजधानी कुंडिनपुर थी । उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम रुक्मिणी जो पांच भाइयों के बाद उत्पन्न हुई थी इसलिए सभी की लाडली थी। उसके शरीर में लक्ष्मी के शरीर के समान ही लक्षण थे इसलिए लोग उसे लक्ष्मी स्वरूपा भी कहा करते थे। रुक्मिणी जब विवाह योग्य हुई तो भीष्मक को उसके विवाह की चिंता हुई। रुक्मिणी के पास जो लोग आते जाते थे वह श्री कृष्ण की प्रशंसा किया करते थे श्री कृष्ण अलौकिक पुरुष है। साथ ही समस्त विश्व में उनके जैसा कोई दूसरा पुरुष नहीं है। भगवान श्री कृष्ण के गुणों को सुनकर रुक्मिणी ने भी भगवान श्री कृष्ण को अपने मन में बसा लिया और उनके साथ ही विवाह करने का प्रण किया कि यदि विवाह करेगी तो श्री कृष्ण से ही करेंगी। उधर भगवान श्री कृष्ण को भी नारद जी के बताए अनुसार ज्ञात हुआ कि रुकमणी जैसा सुंदर और गुणवान दूसरा कोई नहीं है।

रुक्मिणी का बड़ा भाई रुक्मी भगवान श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। वह अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह चेदि वंश के राजा और कृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल के साथ करना चाहता था। उसका एक कारण यह भी था कि शिशुपाल भी रुक्मी के समान ही कृष्ण से शत्रुता रखता था। अपने पुत्र की भावनाओं का सम्मान करते हुए राजा भीष्मक ने शिशुपाल के साथ ही पुत्री के विवाह का निश्चय कर लिया और शिशुपाल के पास संदेश भेजकर विवाह की तिथि भी निश्चित कर ली।

भगवान श्रीकृष्ण ने सुन रखा था की रुक्मिणी भी उनसे विवाह करना चाहती है रुक्मिणी पर आए इस संकट से निकलने के लिए श्री कृष्ण के भाई बलराम के साथ एक योजना बनाई कि जब शिशुपाल बारात लेकर रुक्मिणी जी के द्वार पर आए तो रुक्मिणी का अपहरण कर लेंगे योजना अनुसार देवी रुक्मिणी का जिस दिन शिशुपाल से विवाह होने वाला था वह उस दिन अपनी सखियों के साथ मंदिर गई थी। जब वह पूजा करके बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बैठा लिया अपहरण करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने शंख बजाया जिसे सुनकर रुक्मी और शिशुपाल हैरान रह गए कि कृष्ण कैसे आ गए। तब रुक्मी और श्री कृष्ण के बीच युद्ध हुआ जिसमें रुक्मी हार गया और श्री कृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आ गए इस तरह द्वारिका में रुक्मिणी और श्री कृष्ण का विवाह संपन्न हुआ। भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र का नाम प्रद्युम्न था जो कामदेव के अवतार थे।

रुक्मिणी अष्टमी का महत्व-
देवी रुक्मिणी भगवान श्री कृष्ण की 8 पटरानियों में से एक थी। रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी के रामायण में उल्लेख आया है कि नारद के श्राप के कारण राम अवतार में भगवान राम को सीता का वियोग सहना पड़ा कृष्ण अवतार में राधा और कृष्ण का वियोग हुआ। रुक्मिणी अष्टमी का पर्व बहुत महत्वपूर्ण एवं पुण्य दायक है। इस व्रत को करने से रुक्मिणी जी की अति कृपा प्राप्त होती है। यह भगवान श्री कृष्ण की भार्या और प्रियतमा है। इसलिए इस पूजन से नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण की भी असीम कृपा रहती है।

शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ राधा जी भी अष्टमी तिथि को उत्पन्न हुई और रुक्मिणी जी का जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ है। इसलिए अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। इसमें राधाष्टमी और रुक्मिणी अष्टमी को लक्ष्मी पूजन का दिन माना गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति रुक्मिणी अष्टमी के दिन नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी सहित उनके पुत्र प्रद्युम्न की पूजा करते हैं उनके घर में धन धान्य की वृद्धि होती है। साथ ही परिवार में आपसी सामंजस्य बना रहता है तथा संतान सुख की प्राप्ति भी होती है।

रुक्मिणी अष्टमी की पूजा विधि-
इस दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान के बाद घर के मंदिर में सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें। गणेश पूजन के बाद नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी की पूजा करें। तदुपरांत भगवान श्री कृष्ण के हाथों के लिए सुगंधित फूलों वाला जल अर्पित करना चाहिए। तदुपरांत आसन पर नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी की स्थापना करें। प्रतिमाओं को सर्वप्रथम शुद्ध जल से स्नान कराएं तदुपरांत पंचामृत से स्नान कराएं पुनः शुद्ध जल से स्नान करावे इसके बाद गंध पुष्प अक्षत चढायें। स्नान कराते समय श्री कृष्ण शरणम मम या ॐ क्रं कृष्णाय नमः का जप करें। तदुपरांत एक पात्र में भगवान श्री कृष्ण एवं रुक्मिणी की प्रतिमा रखकर दक्षिणावर्ती शंख से केसर युक्त दूध से भगवान श्री कृष्ण एवं रुक्मिणी का दुग्ध अभिषेक करें।

शुभ मुहूर्त-
इस बार सन्2024 में दिनांक4 जनवरी को रुक्मिणी अष्टमी मनाई जाएगी। यदि इस दिन अष्टमी तिथि की बात करें तो इस दिन अष्टमी तिथि 37 घड़ी 15 पल अर्थात रात्रि 10:05 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नामक नक्षत्र 25 घड़ी 50 पल अर्थात शाम 5:31 बजे तक है। इस दिन बालव नामक करण 4 घड़ी 33 पल अर्थात प्रातः 9:00 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव कन्या राशि में विराजमान रहेंगे।
आप सभी को रुक्मणी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।
लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल (उत्तराखंड)।

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