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उत्तराखंड

*दत्तात्रेय जयंती के रूप में मनाई जाती है मार्गशीर्ष पूर्णिमा। क्या क्या उपाय करें इस दिन? और क्या है भगवान दत्तात्रेय के संबंध में रोचक कथा आइए जानते हैं।*

इस बार दिनांक 26 दिसंबर 2023 दिन मंगलवार को मार्गशीर्ष पूर्णिमा या दत्तात्रेय जयंती मनाई जाएगी। धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा तिथि माता लक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय है। इसलिए तो कोजागिरी पूर्णिमा पर
माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करती है। पूर्णिमा की रात चंद्रदेव अपने 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। पूर्णिमा के
दिन व्रत रखने और पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य लाभ मिलता है। आज मैं प्रिय पाठकों को कुछ ज्योतिषी
उपायों को करके माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के महत्वपूर्ण उपाय बताना चाहूंगा। जिससे धन सौभाग्य के साथ माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहे।

उपाय नंबर 1-
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा करें माता लक्ष्मी को 11 कौड़ियां
अर्पित करें। उस पर हल्दी का तिलक करें उसे पूरी रात माता लक्ष्मी के चरणों में रहने दें । तदुपरांत दूसरे दिन
उन्हें कपड़े में बांधे और तिजोरी में रख दें। इससे आपके धन एवं सौभाग्य में वृद्धि होगी। माता लक्ष्मी की कृपा भी
बनी रहेगी।

उपाय नंबर दो –
पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी को पूजा के समय सुपारी अवश्य चढ़ाएं फिर उस सुपारी में रक्षा सूत्र लपेट दें रक्षा सूत्र का अभिप्राय कलावा से है। कुछ समय बाद उसे तिजोरी में रख लें ऐसा उपाय करने से आपके धन में वृद्धि होगी बरकत होगी आपके पास धन स्थिर रहने लगेगा।

उपाय नंबर 3-
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने की परंपरा भी है। ऐसी मान्यता है कि पीपल के पेड़ में सभी देवी देवताओं का वास होता है।

उपाय नंबर 4-
पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं। ऐसा करने से अभीष्ट मनोकामनाएं पूर्ण होगी।

उपाय नंबर 5-
पूर्णिमा का व्रत रखने और इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा किसी सुयोग्य ब्राह्मण देव से करवाने से एवं सत्यनारायण भगवान की कथा श्रवण (सुनने )का भी महत्व होता है। सत्यनारायण भगवान को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है। इस दिन आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा करके अपने सुखमय पारिवारिक जीवन की कामना कर सकते हैं।

श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष माह को स्वयं का महीना बताया है। इस पूरे महीने भगवान श्री कृष्ण की पूजा आराधना की जाती है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष माह के दिन सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण भी किया जाता है। अब अब प्रिय पाठकों को भगवान दत्तात्रेय की कथा के संबंध में बताना चाहूंगा। परम भक्त वत्सल भगवान दत्तात्रेय भक्तों के स्मरण करने से तुरंत उनके पास पहुंच जाते हैं। वैसे तो मार्गशीर्ष माह विवाह पंचमी, गीता
जयंती मोक्षदा एकादशी आदि पर्वों के कारण महत्त्व तो रखता ही है साथ ही इस माह की पूर्णता माग्गशीष
पूर्णमासी दत्तात्रेय जयंती के दिन पूर्ण होती है। हमारे सनातन धर्म उपासना एवं सन्यास धर्म में दत्तात्रेय भगवान का विशेष महत्व है। इन सब के अतिरिक्त इस दिन सन्यासियों के अखाड़ों में विशेष आध्यात्मिक
प्रवचन भी चलते हैं जिससे आराधना और साधना से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। महा योगेश्वर दत्तात्रेय भगवान
विष्णु के अवतार हैं। इनका अवतरण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था अतः इस दिन समारोह पूर्वक
दत्तात्रेय जयंती का उत्सव मनाया जाता है।

श्रीमद्धागवत में लिखा है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्रि के व्रत करने पर “दतोमयाहमिति यद् भगवान सः: दत्तः ” मैंने अपने आप को तुम्हें दे दिया है विष्णु के ऐसा कहने से भगवान विष्णु ही अत्रि के पुत्र रूप में अवतरित हुए और
दत्त कहलाए। अत्रिपुत्र होने से यह आत्रेय कहलाए। दत्त और आत्रे के सहयोग से इनका नाम दत्तात्रेय प्रसिद्ध हो
गया। उनकी माता का नाम अनसुया है। उनका पतिव्रता धर्म संसार में प्रसिद्ध है। पुराणों में यह कथा भी आती है
कि एक बार ब्रह्मणी रुद्राणी और लक्ष्मी को अर्थात माता सरस्वती माता पार्वती एवं माता लक्ष्मी को अपने पतिदव्रत
धर्म पर गर्व हो गया भगवान को अपने भक्तों का अभिमान सहन नहीं होता है तब उन्होंने एक अद्भुत करने की सोची। भक्तवत्सल भगवान ने देवर्षि नारद के मन में प्रेरणा उत्पन्न की। नारद जी घूमते घूमते देवलोक
पहंचे और तीनों देवियों के पास बारी-बारी से जाकर कहा पति-पत्नी अनसूया के समक्ष आपका सतीत्व
नगण्य है। तीनों देवियों ने अपने स्वामियों अर्थात ब्रह्मा विष्णु एवं महेेश से देवर्ष नारद की कही हुई यह बात
बताई और उनसे अनुसुइया की पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने को कहा देवताओं ने बहुत समझाया परंतु उनके हट
के सामने देवताओं की एक न चली। अंतत: साधु वेश बनाकर तीनों देव अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे।

महर्षि
अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे अतिथियों को आया हुआ देख देवी अनुसूया ने उन्हें प्रणाम कर और कंदमूल
आदि अर्पित किए किंतु वह बोले हम लोग तब तक आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे जब तक आप हमें अपने गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराती। यह बात सुनकर सर्वप्रथम तो देवी अनुसूया अवाक रह गई किंतु अतिथि धर्म की महिमा का लोप ना हो इस दृष्टि से उन्होंने नारायण का ध्यान किया। अपने पतिदेव का स्मरण किया और इसे भगवान की लीला समझकर वह बोली यदि मेरा पतिव्रता धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु 6 – 6 माह के शिशु हो जाए इतना कहना ही था कि तीनों देव छह छह माह के शिशु बन गए। और रूदन करने लगे। तब माता ने उन्हें गोद में लेकर दुग्ध पान कराया। फिर
पालने में झूलाने लगी। ऐसे ही कुछ समय व्यतीत हो गया। जब यह तीनों देव बहुत समय तक वापस नहीं
आए तब तीनो देवियों को अर्थात मां सरस्वती मां पार्वती एवं मां लक्षमी को बड़ी चिंता होने लगी। फलत: नारद जी
वहां आए और उन्होंने सारा वृत्तांत कह सुनाया। तदुपरांत तीनों देवियां अनुसूया के पास आई और उन्होंने
उनसे क्षमा मांगी। देवी अनुसूया ने अपने पतिवर्ता से तीनों देवों को पूर्व रूप में कर दिया। इस प्रकार प्रसन्न
होकर तीनों देवों ने अनुसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोली आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हो।
तथास्तु कहकर तीनों देव और देवियां अपने लोक को चले गए। कुछ समय बाद यही तीनों देव अनुसूया के गर्भ
से प्रकट हुए। ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय श्री विष्णु भगवान
के अवतार हैं और इन्हीं के आविर्भाव की तिथि दत्तात्रेय जयंती कहलाती है।

शुभ मुहूर्त
इस बार दिनांक 26 दिसंबर 2023 दिन मंगलवार को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाएगी ।इस दिन यदि पूर्णिमा तिथि की बात करें तो इस दिन 57 घड़ी 18 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 6:03 बजे तक पूर्णमासी तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन मर्गशिरा नामक नक्षत्र 37 घड़ी 58 पल अर्थात दोपहर 12:19 बजे तक है तदुपरांत आर्द्रा नामक नक्षत्र उदय होगा।
आप सभी को मार्गशीर्ष पूर्णिमा (भगवान दत्तात्रेय जयंती)की हार्दिक शुभकामनाएं।
लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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