उत्तराखंड
*सनातन धर्म के अनुयाई 25 दिसंबर को मनाए तुलसी पूजन दिवस।*
हमारे सनातन धर्म में तुलसी बहुत महत्वपूर्ण है। तुलसी भारतवर्ष में प्रायः सर्वत्र पाई जाने वाली औषधि है। यही सभी हिंदुओं की पूज्या भी है। इसी कारण घर-घर में इसका पौधा लगाया जाता है और पूजा भी की जाती है। इसको हिंदी में तुलसी गुजराती महाराष्ट्र बंगाल तमिलनाडु और अरब में भी तुलसी के नाम से जाना जाता है। वैसे इसे हरिप्रिया माधवी और वृंदा के नाम से भी जाना जाता है । इस की 60 जातियां होती हैं प्रायः चार प्रकार की तुलसी मुख्य है 1- रामा तुलसी 2- श्यामा तुलसी 3 -वन तुलसी 4- कठेरक और मार बर्बद। हमारे यहां पर यह सभी जातियां प्राप्त होती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से तुलसी के गुण–
1-रासायनिक गुण-इसमें एक उड़न शील तेल पाया जाता है। जिस का औषधि उपयोग होता है। कुछ समय रखा रहने पर यह स्फिटिक की तरह जम जाता है। इसे तुलसी कपूर भी कहते हैं। इसमें कीनोल तथा एल्केलाइट भी पाए जाते हैं। एस्कार्बिक एसिड और केरोटिन भी पाया जाता है।
औषधीय गुण–
मलेरिया उपचार में इसका गिलोय नीम के साथ उपयोग किया जाता है। जहां तुलसी के पौधे होते हैं वहां मलेरिया के कीटाणु नहीं आते हैं। पद्म पुराण चरक संहिता हरित संहिता योगरत्नाकर सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथों में इसके गुणों का वर्णन मिलता है।
धार्मिक महत्व—
भगवान शालिग्राम साक्षात नारायण स्वरूप हैं और तुलसी के बिना उनकी कोई पूजा संपन्न नहीं होती है। नैवेद्य आदि के अर्पण के समय मंत्रोच्चारण और घंटा नाद के साथ तुलसी दल समर्पण भी उपासना का मुख्य अंग माना जाता है। मृत्यु के समय तुलसीदल युक्त जल मरणासन्न व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है। जिससे मरणासन्न व्यक्ति को सद्गति प्राप्त होती है। दाह संस्कार के समय तुलसी के काष्ठ का उपयोग किया जाता है। इससे करोड़ों पापों से मुक्ति मिल जाती है। तुलसी के काष्ठ की माला सिद्धि माला कहलाती है इसी प्रकार तुलसी मंजरी का भी विशेष महत्व है। तुलसी का पूजन वैसे तो वर्षभर किया जाता है पर विशेष तौर पर कार्तिक में तुलसी विवाह की परंपरा है। तुलसी के समीप किया गया अनुष्ठान या पूजा बहुत ही फलदायक होती है।
औषधीय उपयोग—
तुलसी दल और काली मिर्च का काढ़ा पीने से ज्वर का समन होता है।
तुलसी पत्र स्वरस 6 ग्राम निर्गुण पत्र स्व रस 6 ग्राम पीपल चूर्ण 1 ग्राम मिलाकर पीने से ज्वर ठीक हो जाता है।
तुलसीदल 10 जावित्री 1 ग्राम शहद के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए इससे 21 दिनों तक आंतरिक ज्वर में लाभ होता है। तुलसी पत्ते और अडूसा के पत्ते मिलाकर बराबर मात्रा में सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
तुलसी पत्र स्वरस कान में डालने से कर्णशूल शांत होता है।
नाक के अंदर पिंडिका में तुलसी पत्र बांट कर सूंघने से आराम होता है।
तुलसी पत्र स्वरस में मधु मिलाकर आंख में लगाने से आंखों में लाभ होता है।
तुलसी पत्र स्वरस भृंगराज पत्र स्वरस और आंवला बारीक पीसकर मिलाकर लगाने से बाल झड़ना बंद हो जाता है। और बाल काले भी होते हैं।
तुलसी की जड़ को पीसकर पान में रखकर खाने से वीर्य पुष्ट होता है। और शक्ति बढ़ती है।
तुलसी बीज या जड़ का चूर्ण पुराने गुड़ के साथ मिलाकर तीन माशा प्रतिदिन दूध के साथ सेवन करने से पौरूष शक्ति में वृद्धि होती है।
तुलसी बीज का चूर्ण पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
एक पाव पानी एक पाव दूध मिलाकर उसमें दो तोला तुलसी पत्र स्वरस मिलाकर पीने से मूत्र दाह ठीक होता है।
तुलसी पत्र स्वरस में मधु मिलाकर सेवन करना बहुत ही लाभदायक होता है।
तुलसी मंजरी और काला नमक मिलाकर खाने से अजीर्ण रोग में लाभ होता है।
तुलसी पंचांग का काढ़ा पीने से दातों में आराम होता है।
तुलसी एक चम्मच अदरक स्वरस एक चम्मच मिलाकर खाने से पेट दर्द में आराम होता है।
वात रोग में तुलसी पत्र काली मिर्च चूर्ण घृत के साथ सेवन करना चाहिए।
रक्त विकार में तुलसी और गिलोय 3-3 ग्राम का क्वाथ बनाकर मिश्री मिलाकर सेवन करें।
भोजन के बाद 5 तुलसीदल खाने से मुख से दुर्गंध नहीं आती है।
बालतोड़ होने पर तुलसी पत्र पीपल पत्ती मिलाकर लगाने से आराम होता है।
इसके अतिरिक्त तुलसी के अनेक रोगों में उपयोग हैं।
जिन घरों के आंगन में तुलसी होती है वहां मलेरिया के वायरस नहीं आते हैं मच्छर नहीं आते हैं। तुलसी से प्राकृतिक रूप में शुद्ध हवा मिलती है। अतः मेरा सभी हिंदू भाई बहनों से विनम्र अनुरोध है कि 25 दिसंबर के दिन तुलसी पूजन दिवस मनाएं इस दिन प्लास्टिक के पेड़ की पूजा न करें अपितु पावन तुलसी के पौधे की पूजा करें और यह दिन तुलसी पूजन दिवस के रूप में मनाए।
लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।