उत्तराखंड
*बहुत महत्वपूर्ण होती है सोमवती अमावस्या।*
सोमवती अमावस्या का अर्थ है जिस अमावस्या के दिन सोमवार हो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। ऐसा संयोग बहुत कम आता है। वर्ष में एक या दो बार ऐसी स्थिति बनती है। इसलिए यह अमावस्या और अधिक महत्वपूर्ण होती है। इस अमावस्या में जप साधना आदि बहुत प्रभावी होते हैं। इसके अतिरिक्त यंत्र ताबीज आदि बनवाने से यह अन्य दिनों की अपेक्षा सोमवती अमावस्या के दिन बनवाना अधिक प्रभावी होता है। इस वर्ष 2023 में दिनांक 13 नवंबर 2023 दिन सोमवार को ऐसा संयोग बना है। वैसे अमावस्या पितरों का दिन माना जाता है। इस दिन पित्र गणों का तर्पण करना चाहिए। घर को गाय के गोबर अथवा गोमूत्र से पूर्णतया शुद्ध् करके पूर्ण शुद्धि से बने भोजन का भोग पितरों को लगाना चाहिए। इससे पित्र गण तृप्त होते हैं। और आशीर्वाद देते हैं। जिससे जीवन के सभी संकट दूर होते हैं । और घर में सुख शांति बनी रहती है। इस दिन भूखे जीवों को भोजन कराने का भी बहुत महत्व है। कम से कम एक भिखारी को दान अवश्य करना चाहिए। गाय को गौ ग्रास देना चाहिए। या चींटियों को शक्कर खिलानी चाहिए।
सोमवती अमावस्या पर निकट के किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल एवं बेलपत्र चढ़ाने चाहिए। इससे कालसर्प दोष का असर भी खत्म हो जाता है। इसक अतिरिक्त पाठकों को एक सबसे महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि जो व्यक्ति यह सब नहीं कर सकते हैं। वह सोमवती अमावस्या के दिन घर के मंदिर में या ईशान कोण यानी पूर्व उत्तर दिशा के बीच गाय के घी का दीपक जलाएं ध्यान रहे दिए की बत्ती रुई की न होकर लाल रंग के धागे की हो और केसर युक्त हो। इससे मां लक्ष्मी तुरंत ही प्रसन्न होती है। सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी की परिक्रमा करें । और सूर्य नारायण को जल देने से भी दरिद्रता दूर होती है। पुराणों में ऐसा माना गया है की पीपल के मूल में भगवान विष्णु तने में शिवजी तथा अग्रभाग में ब्रह्मा जी का वास होता है। इसलिए इस दिन पीपल के पूजन से सौभाग्य की वृद्धि होती है। इसके
अतिरिक्त पर्यावरण को भी सम्मान देने के लिए भी सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने
का विधान माना गया है। इसके साथ ही इस दिन माता पार्वती माता लक्ष्मी की पूजा करना भी शुभ होता है। अब
यदि बात करें अमावस्या तिथि और मुहुत्त की तो दिनांक 13 नवंबर 2023 दिन सोमवार को अमावस्या तिथि 20 घड़ी 50 पल अर्थात दोपहर 2:57 बजे तक है। इस दिन विशाखा नामक नक्षत्र 51 घड़ी 45 पल अर्थात अगले दिन प्रात 3:19 बजे तक है। इस दिन सौभाग्य नामक योग 21 घड़ी 43 पल अर्थात शाम 3:18 बजे तक है। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन रात्रि 9:11 बजे तक चंद्र देव तुला राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्र देव वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे।
सोमवती अमावस्या 2023 पितृ दोष उपाय का समय
सोमवती अमावस्या के दिन आप दिन में 11:00 बजे से दोपहर 02:30 बजे तक पितृ दोष उपाय कर सकते हैं। उस दिन आप स्नान के बाद पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, अन्न दान, ब्राह्मण भोज, पंचबलि कर्म आदि कर सकते हैं। इससे पितर प्रसन्न होते हैं।
सोमवती अमावस्या का महत्च
सोमवती अमावस्या का दिन स्नान-दान के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा
के लिए भी है। उस दिन सुहागन महिलाएं व्रत रखकर शिव और गौरी की पूजा करती हैं। उनके
आशीर्वाद से पति को लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इसके
अलावा सोमवती अमावस्या पर आप अपने नाराज पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं।
सोमवती अमावस्या पर कुछ महत्वपूर्ण मंत्र
स्नान करते हुए ये मंत्र पढ़ें
अयोध्या, मथुरा, माया, काशी कांचीअवन्तिकापुरी, द्वारवती
ज्ञेयाः सपतैता मोक्ष दायिका।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदा सिंधु कावेरी
जलेस्मिनेसंनिधि कुरू।।
तदुपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर समीप के किसी शिव मंदिर में पूजा के दौरान सर्वप्रथम गायत्री मंत्र का स्मरण करें (मन में)
गायत्री मंत्र:-
ॐ भूर्भुव: स्वः तत्सवितुवरेण्यं भगों देवस्य
धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ पितृभ्य: नम।
सोमवार का दिन होने के कारण शिवलिंग का अभिषेक करें
और ॐ नमः शिवाय मंत्र का निरंतर जाप करते रहें। इस बीज
मंत्र से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और साधक की सभी
मनोकामना पूर्ण कर देते हैं।
यदि संभव हो सके तो शिव पंचाक्षर स्तोत्र पढ़ें यदि संभव न हो तो ॐ नमः शिवाय का जप 108 बार करें।
भगवान भोलेनाथ की कृपा से और मेरे प्रिय पाठकों के हितों को ध्यान में रखते हुए आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित एवं लिखित शिव पंचाक्षर स्तोत्र निम्न लिखित है —
श्रीशिवपज्चाक्षरस्तोत्रम् ॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धराय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय ।॥१ ॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
वसिष्ठकुम्भोद्धवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मैं व काराय नमः शिवाय ॥४॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ।५॥
पज्चाक्षरमिद्द पुण्यं यः पठेच्छिवसन्रिधौ।
शिवलोकमवाप्लोति शिवेन सह मोदते ॥
पाठकों की सुविधा हेतु इसका हिन्दी अनुवादः
शिवपज्चाक्षर स्तोत्र के रचयिता आदि गुरु
शंकराचार्य हैं, जो परम शिवभक्त थे।
शिवपञ्वाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मन्त्र नमः
शिवाय पर आधारित है।
न- पृथ्वी तत्त्व का
मं – जल तत्त्व का
शि – अग्नि तत्त्व का
वा – वायु तत्त्व का और
य – आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है।
जिनके कण्ठ में सर्पों का हार है, जिनके तीन
नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है और
दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं अर्थात् जो
दिगम्बर (निर्वस्त्र हैं ऐसे शुद्ध अविनाशी
महेश्वर न कारस्वरूप शिव को नमस्कार है।
1।
गङ्काजल और चन्दन से जिनकी अर्चना हुई
हैं, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी
भलिभाँति पूजा हुई है। नन्दी के अधिपति,
शिवगणों के स्वामी महेश्वूर म कारस्वरूप
शिव को नमस्कार है॥2॥
जो कल्याणस्वरूप हैं, पार्वतीजी के
मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो
सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश
करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजा में वृषभ (बैल)
का चिह्न शोभायमान है, ऐसे नीलकण्ठ शि
कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥3॥
वसिष्ठ मुनि, अगस्त्य ऋषि और गौतम ऋष
तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक
की पूजा की है, चन्द्रमा, सू्य और अग्नि
जिनके नेत्र हैं, ऐसे व कारस्वरूप शिव को
नमस्कार है।॥4॥।
जिन्होंने यक्ष स्वरूप धारण किया है, जो
जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक* है, जो
दिव्य सनातन पुरुष हैं, ऐसे दिगम्बर देव य
कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥5॥
जो शिव के समीप इस पवित्र पञ्चाक्षर स्तोत्र
का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त
होता है और वहाँ शिवजी के साथ आनन्दित
होता है।
भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती की कृपा आप और आपके परिवार में सदैव बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।
लेखक – आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।