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उत्तराखंड

*सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जाएगा इस बार करवा चौथ (करक चतुर्थी) व्रत*

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प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चंद्रोदय ब्यापिनी में करवाचौथ व्रत किया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और चांद निकलने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं। महिलाओं को चांद का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस व्रत में व्रत कथा का बहुत आधिक महत्व होता है। चांद के दर्शन से पहले करवा चौथ व्रत कथा का पाठ अवश्य करें।

शुभ मुहूर्त
इस बार सन 2023 में दिनांक 1 नवंबर 2023 दिन बुधवार को करवा चौथ व्रत मनाया जाएगा। इस दिन चतुर्थी तिथि 37 घड़ी 8 पल अर्थात रात्रि 9:19 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन मृगशिरा नामक नक्षत्र 55 घड़ी 15 पल अर्थात अगले दिन प्रात 4:34 बजे तक है। यदि योग की बात करें तो इस दिन परिधि नामक योग 18 घड़ी 53 पल अर्थात दोपहर 2:01 बजे तक है। वहीं बव नामक करण सात घड़ी आठ पल अर्थात प्रातः 9:19 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव शाम 4:15 बजे तक वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्रदेव मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।

पूजा का शुभ मुहूर्त
यदि करवा चौथ पूजा के शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस दिन शाम 5:12 बजे से रात्रि 8:43 बजे तक पूजा का उत्तम मुहूर्त है।

सर्वार्थ सिद्धि योग
यदि सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो दिनांक 1 नवंबर 2023 दिन बुधवार को प्रातः 6:28:00 से अगले दिन प्रातः 4:34 बजे तक महत्वपूर्ण सर्वार्थ सिद्धि योग है।

करवा चौथ व्रत की कथा-
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था।
रात्रि को साहकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि
उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की
हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है
जैसे चतुर्थी का चांद हो। उसे देख कर करवा उसे अर्ध देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में
डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है। तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है। उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है। और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आर्शिवाद मिलता है। इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलाएं पढ़ती और सुनती हैं। खैर कथा चाहे कुछ भी रही हो परन्तु कथा सुनना या पढ़ना नितांत आवश्यक है। आप सभी को करवा चौथ व्रत की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं। प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी की कृपा हम और आप सभी पर बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।
लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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