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*चन्द्र ग्रहण का साया इसबार कोजागिरी पूर्णिमा पर। क्या है कोजागिरी का अर्थ? आइए जानते हैं,कथा, महत्व, शुभ मुहूर्त एवं आरती*👇👇👇👇👇👇
नैनीताल।अश्विनी मास की पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा या शरद्पूर्णिमा कहते हैं। यह पूर्णिमा व्रत धन व समृद्धि का आशीष देती है। हिंदू धर्म में इस दिन को जागरण व्रत रखा जाता है। इसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का रिवाज है।
कोजागिरी पूर्णिमा को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है यह व्रत लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने वाला माना जाता है।
कोजागिरी एक शब्द नहीं अपितु एक संपूर्ण वाक्य है। एक प्रश्नवाचक वाक्य।यह 3 शब्दों से मिलकर बना है। कोजागिरी का अर्थ है कौन जाग रहा है?
को जागि री(को+ जागि+री) यह कुमाऊनी भाषा के 3 शब्दों के संयुक्त होने से बना वाक्य है।
जिसका अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है? इस दिन मध्य रात्रि को माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करती है और कोजागिरी, कोजागिरी पुकारती है माता लक्ष्मी के जो भक्त जागरण कर रहे होते हैं उन्हें माता लक्ष्मी अनेक प्रकार के धन-संपत्ति आदि प्रदान करती है।
*शुभ मुहूर्त,,,,*
इस बार सन 2023 में दिनांक 28 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को कोजागिरी पूर्णिमा मनाई जाएगी इस दिन पूर्णिमा तिथि 48 घड़ी 40 पल अर्थात मध्य रात्रि 1:53 बजे तक है यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन रेवती नामक नक्षत्र दो घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 7:29 तक है तदुपरांत अश्विनी नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि करण की बात करें तो इस दिन विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा 21 घड़ी 35 पल अर्थात शाम 3:03 बजे तक है ।सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव प्रातः 7:30 बजे तक मीन राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव मेष राशि में प्रवेश करेंगे।
कोजागिरी व्रत विधि,,,
नारद पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को प्रातः स्नान कर उपवास करना चाहिए। इस दिन पीतल चांदी तांबे या सोने से बनी लक्ष्मी की प्रतिमा को कपड़े से ढक कर विभिन्न विधियों द्वारा देवी पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात रात्रि को चंद्र उदय होने पर घी के 11 दीपक जलाने चाहिए। दूध से बनी हुई खीर को बर्तन में रखकर चांदनी रात में रख देना चाहिए। यदि संभव हो तो चांदी का बर्तन होना चाहिए अन्यथा किसी भी बर्तन पर खीर रखनी चाहिए। और प्रातः चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाकर उसमें से ही ब्राह्मणों को प्रसाद स्वरूप दान देना चाहिए और तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप सभी सदस्यों में बांट देना चाहिए इस दिन रात के समय जागरण या पूजा करनी चाहिए इसके अतिरिक्त इस व्रत की महिमा से मृत्यु के पश्चात वर्ती सिद्धत्व को प्राप्त होता है।
एक प्रचलित कथा के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी रात के समय भ्रमण कर यह देखती है कि कौन जाग रहा है। जो जागता है उसके घर मैं मां अवश्य आती है। ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा को किए जाने वाला कोजागिरी व्रत लक्ष्मी जी को अति प्रिय है। इसलिए इस व्रत का श्रद्धा पूर्ण पालन करने से लक्ष्मी जी अति प्रसन्न हो जाती है और धन वृद्धि का आशीष देती है।
कोजागिरी व्रत कथा,,,,,,
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक साहूकार को दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी । व्रत अधूरा रहने के कारण छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। एक दिन अपना दुख जब उसने एक पंडित को बताया तो उन्होंने बताया कि व्रत अधूरा रखने के कारण ऐसा होता है यदि तुम पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। इसके बाद उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया और इस के पुण्य से उसे संतान की प्राप्ति हुई परंतु वह भी कुछ दिनों बाद मर गया। उसने लड़के को एक पीड़ा पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया और फिर बड़ी बहन को बुलाकर घर ले आई और बैठने के लिए वही पीड़ा दे दिया बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका लहंगा बच्चे को छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता तो तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तब से यह दिन एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।
पाठकों से विनम्र निवेदन है कि आप भी इस दिन विधिपूर्वक माता लक्ष्मी की पूजा करें माता लक्ष्मी की आरती करें माता लक्ष्मी की आरती के साथ-साथ भगवान कुबेर जी की आरती और चंद्र देव की आरती भी करनी चाहिए। पाठकों की सुविधा हेतु माता लक्ष्मी जी कुबेर जी महाराज एवं चंद्र देव की आरती नीचे दी गई है-
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता।॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता।॥।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्रुण अता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता।॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता।॥
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
औम जय लक्ष्मी माता।॥
जिस घर में तुम रहती, सब सद्रण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता।॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होति, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता।॥।
ओम जय लक्ष्मी माता।
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
औम जय लक्ष्मी माता।॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।
औम जय लक्ष्मी माता॥
चंद्र देव आरती
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।
दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी।
रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी।
दीन दयाल दयानिधि, भव बंधन हारी।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
सकल मनोरथ दायक, निर्गुण सुखराशि।
योगीजन हुदय में, तेरा ध्यान धरें।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, संत करें सेवा।
वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी।
प्रेमभाव से पूरजें, सब जग के नारी।
शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी।
धन सम्पत्ति और वैभव, सहजे सो पावे।
विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी।
सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें।
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।
कुबेर जी की आरती
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे,
स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,
भण्डार कुबेर भरे।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे… ।
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,
स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,
कई-कई युद्ध लड़े ॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे… ॥।
स्वर्ण सिंहासन बैठे,
सिर पर छत्र फिरे,
स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं,
सब जय जय कार करैं।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…।॥
गदा त्रिशूल हाथ में,
शस्त्र बहुत धरे,
स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन,
धनुष टंकार करें ॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे… ॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,
स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,
साथ में उड़द चने॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…
बल बुद्धि विद्या दाता,
हम तेरी शरण पड़े,
स्वामी हम तेरी शरण पड़े,
अपने भक्त जनों के,
सारे काम संवारे॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…
मुकुट मणी की शोभा,
मोतियन हार गले,
स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,
घी की जोत जले॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे… ।
यक्ष कुबेर जी की आरती,
जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमपाल स्वामी,
मनवांछित फल पावे।
पाठकों को एक महत्वपूर्ण बात और बताना चाहूंगा कि इस बार शरद पूर्णिमा से संबंधित रात को रखी जाने वाली खीर इस बार नहीं रखी जाएगी। इस बार कोजागिरी पूर्णिमा से संबंधित पूजा अनुष्ठान भी शाम 4:05 से पूर्व पूर्ण कर लें।
हालांकि चंद्र ग्रहण मध्य रात्रि 1:05 से प्रारंभ होकर मध्य रात्रि 2:23:00 तक रहेगा परंतु सूतक काल 9 घंटे पूर्व प्रारंभ हो जाता है अतः शाम 4:05 बजे से सूतक काल प्रारंभ हो जाएगा।
इसलिए
मान्यताओं के अनुसार हर बार शरद पूर्णिमा पर रखी
जानेवाली खीरकी रात अमृत वर्षा के लिए रात को रखी जाने
वाली खीर इस बार नहीं रखी जा सकेगी। ऐसा इस रात खंडग्रास चन्द्रग्रहण के कारण संभव नहीं
हो पाएगा। सूतक काल नौ घंटे पूर्व 28 अतक्तूबर की शाम से ही
शुरू हो जाएगा, इसलिए पूर्णिमा से संबंधित धार्मिक अनुष्ठान
इस दिन शाम चार बजकर पांच मिनट से पूर्व ही संपन्न करने
होंगे।
इस दिन पूर्णमासी व्रत भी नहीं रखा जा सकता है क्योंकि व्रत उपवास चंद्रोदय के आधार पर ही तोड़ा जाता है उस समय सूतक काल होने के कारण व्रत उपवास भी संभव नहीं होगा। ग्रह अनुष्ठान आदि करना एवं पितृ तर्पण आदि करना अति उत्तम होगा।