उत्तराखंड
*बहुत महत्वपूर्ण है पापांकुशा एकादशी व्रत। जानिए कथा शुभ मुहूर्त।*
शुभ मुहूर्त–
इस बार दिनांक 25 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार को पापांकुशा एकादशी व्रत मनाया जाएगा ।इस दिन एकादशी तिथि 15 घड़ी 23 पल अर्थात दोपहर 12:32 बजे तक है ।यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन शतभिषा नामक नक्षत्र 17 घड़ी 40 पल अर्थात दोपहर 1:27 बजे तक है। यदि करण की बात करें तो इस दिन विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा 15 घड़ी 23 पल अर्थात दोपहर 12:32 बजे तक है। यदि चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव मीन राशि में विराजमान रहेंगे।
इस कथा के अनुसार एक बार पांडु पुत्र अर्जुन,नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण से इस कथा के संबंध में पूछते हैं की, हे जगदीश्वर! मैंने आश्विन कृष्ण एकादशी अर्थात इंदिरा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे आश्विन/क्वार माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है। तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है?कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे कुंतीनंदन!
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।
आश्विन शुक्ल एकादशी के दिन इच्छित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस पूजन के द्वारा मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। हे अर्जुन! जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल की प्राप्ति करते हैं, वह फल इस एकादशी के दिन क्षीर-सागर में शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान विष्णु को नमस्कार कर देने से मिल जाता है और मनुष्य को यम के दुख नहीं भोगने पड़ते। मनुष्य को पा्पों से बचने का दृढ़-संकल्प
करना चाहिए। भगवान विष्णु का ध्यान- स्मरण किसी भी रूप में सुखदायक और पापनाशक है, परंतु पापांकुशा एकादशी के दिन प्रभु का स्मरण-कीर्तन सभी क्लेशों व पापों का शमन कर देता है।
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में विध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूरथा। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप करमों में बीता। जब उसका अतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन काअंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह
बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करके को कहा। महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया।जब यमराज के यमदूत ने इस चमत्कार को देखा तो वह बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस लौट गए।
तो बोलिए भगवान विष्णु की जय।
नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण की जय।
पांडु पुत्र अर्जुन की जय।
पापांकुशा एकादशी व्रत की पूजा विधि —
इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर समीप के किसी नदी या जल स्रोत में स्नान करें अथवा घर में ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तदोपरांत तुलसी वृंदावन के सम्मुख बैठकर सर्वप्रथम एक चौखा रखकर उस पर पीला वस्त्र बिछाकर उस में भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को स्नान कराएं। तदोपरांत उन्हें रोली कुमकुम जौं तिल चढ़ाएं। चावल का प्रयोग बिल्कुल ना करें।इस दिन घर में कोई भी व्यक्ति चावल का प्रयोग ना करें। तदोपरांत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को फल फूल एवं द्रव्य चढ़ाएं और अंत में एकादशी व्रत कथा श्रवण करने के उपरांत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की आरती करें। तदोपरांत तीन बार प्रदक्षिणा करें।