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असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक विजयादशमी का पर्व* *जानिये पौराणिक मान्यता* 👇👇👇
नैनीताल।हिंदू धर्म में दशहरा यानी विजयादशमी के पर्व का विशेष महत्व होता है। प्रति वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा या विजयादशमी पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था और माता सीता को उसके चंगुल से आजाद किया था। तभी से प्रतिवर्ष विजयादशमी के दिन लोग रावण के पुतले का दहन करके बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत का पर्व मनाते हैं। यह पर्व प्रत्येक वर्ष बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
दशहरे का त्यौहार या
विजयादशमी का पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। हिंदू धर्म में दशहरा मुख्य त्योहारों में से एक है। दशहरा को विजयादशमी के नाम से भी जानते हैं। यह पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। यह त्यौहार अवगुणों को त्याग कर गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इसी कारण इसे बुराई पर अच्छाई का प्रतीक मानते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अधर्म अत्याचार और अन्याय के प्रतीक रावण का वध करके धरती वासियों को भय मुक्त किया था और मां देवी दुर्गा मां ने महिषासुर नामक असुर का वध करके धर्म और सत्य की रक्षा की थी। अतः इस दिन भगवान श्री राम दुर्गा जी महालक्ष्मी मां सरस्वती एवं भगवान गणेश जी और हनुमान जी की आराधना करके सभी के लिए मंगल की कामना की जाती है। समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विजयादशमी पर रामायण पाठ श्री राम रक्षा स्तोत्र सुंदरकांड आदि का पाठ किया जाना अति शुभ माना जाता है।
*शुभ मुहूर्त*,
इस वर्ष सन्
2023 में दिनांक 24 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार को विजयदशमी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन दशमी तिथि 22 घड़ी 10 पल अर्थात शाम 3:14:00 तक है यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन धनिष्ठा नामक नक्षत्र 22 घड़ी 38 पल अर्थात शाम 3:25 बजे तक है। गर नामक करण 22 घड़ी 10 पल अर्थात शाम 3:14 बजे तक है ।सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण कुंभ राशि में विराजमान रहेंगे।
*पूजा का मुहूर्त*
यदि विजयदशमी पूजन शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस दिन दोपहर 1:58 बजे से 2:43 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त है इसी दौरान शस्त्र पूजा का भी मुहूर्त है।
*रवि योग*
इस बार विजयदशमी पर्व पर दिनांक 24 अक्टूबर को प्रातः 6:27 से दोपहर 3:38 बजे तक और शाम 6:38 बजे से अगले दिन प्रात 6:28 बजे तक महत्वपूर्ण रवि योग बन रहा है ऐसा माना जाता है कि रवि योग में किए गए कार्यों का शुभ फल प्राप्त होता है।
*इस दिन क्या करना चाहिए*
इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल पर बैठकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं दुर्गा माता गणेश जी भगवान एवं पवन पुत्र हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए उनका षोडशोपचार पूजन करें। श्री राम स्तोत्र का पाठ करें बजरंगबली हनुमान जी का कवच पाठ यदि संभव हो तो संस्कृत या फिर हिंदी में ही कवच पाठ करें संभव हो तो 100 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। यदि संभव हो तो संपूर्ण रामायण का पाठ करें अन्यथा कम से कम सुंदरकांड का पाठ करें। मन में यह संकल्प लें कि अपने मन की सभी बुराइयों को समाप्त कर दें। एक दृढ़ संकल्प यह बना ले कि आज से कम से कम 1-1 बुराइयां प्रतिदिन कम करते जाए और प्रतिदिन एक-एक अच्छाइयां ग्रहण करें। और अपने परिवार के सदस्यों एवं अपने हितेशयों को भी ऐसा ही करने को प्रेरित करें। पाठकों को एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा कि रावण कोई प्रतीकात्मक अथवा प्रत्यक्षदर्शी नहीं होता है यह हमारे मन के अंदर छुपी बुराइयों को ही रावण कहते हैं यदि समाप्त करना हो तो इन्हें ही करना चाहिए।
‘विजयादशमी’ नाम के पीछे अनेक कारण शास्त्रों में प्राप्त
होत हैं। यह दिन देवी भगवती के विजया नाम पर
विजयादशमी कहलाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने
लंका पर विजय प्राप्त की थी इसलिए भी इसे विजयादशमी
कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आश्विन शुक्ल
दशमी के दिन तारा उदय होने के समय विजय नामक काल
होता है इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है। यह काल
सभी कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाला होता है। इस दिन
अपराजिता पूजन, शर्मी पूजन भी किया जाता है।
विजयादशमी को वैसे तो क्षत्रियों का प्रमुख पर्व माना जाता
है। इस दिन वे शस्त्र पूजन करते हैं। इस दिन ब्राह्मण
सरस्वती पूजन करते हैं तथा वैश्य लोग बही-खातों का
पूजन करते हैं।
*विजयादशमी की कथा*
एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के फल
के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया- आश्चिन शुक्ल
दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय
नामक काल होता है जो सर्वमनोकामना पूरी करने वाला
होता है। इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तो और भी
शुभ हो जाता है। भगवान राम ने इसी विजय काल में
लंकापति रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी
वृक्ष ने अर्जुन के गांडीव धनुष को धारण किया था।
पार्वती माता ने पूछा शर्मी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब
और किस प्रकार धारण किया था।
शिवजी ने उत्तर दिया- दु्योधन ने पांडवों को जुएं में हराकर
12 वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञात वास की शर्त
रखी थी। तेरहवें वर्ष में यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें
पुनः 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में
अर्जून ने अपने गांडीव धनुष को शर्मी वृक्ष पर छुपाया था
तथा स्वयं बहन्नला के वेश में राजा विराट के पास सेवा दी
थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को
अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना
धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी।
विजयादशमी के दिन रामचंद्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने के
लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने रामचंद्रजी की विजय
का उद्धोष किया था। इसीलिए दशहरे के दिन शाम के
समय विजय काल में शमी का पूजन होता है।
सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि आप हम सभी को आज के दिन यह संकल्प लेना चाहिए कि आज के दिन से प्रत्येक दिन एक -एक बुराई त्याग कर एक -एक अच्छाई ग्रहण करनी चाहिए।यह संकल्प लेना चाहिए।
पाठकों को बताना चाहूंगा कि रावण कोई प्रत्यक्षदर्शी या पुतला नहीं होता है। हमारे मन के भीतर बैठी बुराइयों को ही रावण कहते हैं। सर्वप्रथम इनको जलाना नितांत आवश्यक है। 10 मुखी रावण को जलाने से पूर्व हमें अपने मन के भीतर के पंचमुखी रावण अर्थात (काम क्रोध मद लोभ मोह) को जलाने का अथक प्रयास करना चाहिए।
यदि ऐसा करने में हम सफल रहे तो यही असली विजयादशमी कहलाएगी।
*मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की आरती*
श्री राम चद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम्।
नव कंजलोचन,कंज-मुख,कर-कंज, पद कंजारुणम्।।
कन्दर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम् ।।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।
सिर मुकुट कुडल तिलक चारू उदारु अंग
विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर सग्राम जित
खरदूषणं।।
इति वदित तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन
रंजनम्।
मम हृदय -कंच निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर
सांवरो।
करुना निथान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानी पूजी पुनी पुनी मुदित मन मन्दिर चली।।
*सोरठा–*
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु ना जात
कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
ध्यान रहे आरती के बाद ऊपर दिए दिए भगवान राम के
इस सोरठे का उच्चारण अवश्य करें। इसके बाद ही
पूजा को संपूर्ण माना जाता है।
*भगवान राम की आरती का महत्व*
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की आरती के बिना पूजा को संपूर्ण
नहीं माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के आनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की आरती करने
से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही
माता धन की देवी माता लक्ष्मी का वास होता है।
वहीं हनुमान जी भी अत्यंत प्रसन्न होते हैं, उनका आशीर्वाद अपने भक्तों के साथ सदैव बना रहता
है।
आप सभी को सपरिवार विजयदशमी पर्व की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं सीता माता की कृपा आप और आपके परिवार में सदैव बनी रहेगी। इसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।
तो बोलिए सियावर रामचंद्र की जय।
पवनसुत हनुमान लला की जय।
लक्ष्मण लला की जय।
लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।