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नवरात्र का अष्टम दिन है मां महागौरी को समर्पित,सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी इस बार अष्टमी,आईए जानते हैं मां महागौरी की कथा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्वपूर्ण मंत्र एवं मां की आरती*- *आचार्य पंडित प्रकाश जोशी*.

 

*शुभ मुहूर्त*

नैनीताल। 22 अक्टूबर दिन रविवार को महागौरी की पूजा होगी ।इस दिन यदि अष्टमी तिथि की बात करें तो 34 घड़ी पांच पल अर्थात शाम 7:59 बजे तक अष्टमी तिथि है ।यदि नक्षत्र की बात करें तो 30 घड़ी 50 पल अर्थात शाम 6:41 बजे तक उत्तराषाढ़ा नामक नक्षत्र है। यदि करण की बात करें तो इस दिन विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा 6 घड़ी 35 पल अर्थात प्रातः 8:59 बजे तक है ।सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मकर राशि में विराजमान रहेंगे।

 

*कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त*

इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग प्रातः 6:26: से शाम 6:44 बजे तक है।ऐसे में आप प्रातः 6:26 बजे से दिनभर कन्या पूजन किसी भी समय कर सकते हैं।

 

*महागौरी की कथा*

बात यदि शिव महापुराण की करें तो शिवपुराण के अनुसार, महागौरी को आठ साल की

उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास होने लग गया था। उन्होंने इसी उम्र से ही भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और शिव को पति रूप

में पाने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी थी। इसलिए अष्टमी तिथि को महागौरी के पूजन का विधान है। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना

विशेष फलदायी होता है। जो लोग 9 दिन का व्रत नहीं रख पाते हैं, वे पहले और आठवें दिन का व्रत कर पूरे 9 दिन का फल प्राप्त करते हैं।

और यदि देवी भागवत पुराण की बात करें तो

देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती अपनी

तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और पत्तों का

आहार करती थीं। बाद में माता केवल वायु पीकर ही तप करना आरभ कर दिया था। तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ है और इससे उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको गंगा में स्नान करने के लिए कहा। जिस समय माता पार्वती गंगा में स्नान करने गई, तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुई, जो कौशिकी कहलाई और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, ,जो महागौरी

कहलाई। मां गौरी अपने हर भक्त का कल्याण करता हैं और उनको सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाती हैं।

 

*ऐसा है मां का स्वरूप*

 

देवीभागवत पुराण के अनुसार, महागौरी का वर्ण रूप

से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण

भी सफेद रंग के ही हैं। मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है, जो भगवान शिव का भी वाहन है। मां का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में दुर्गा शक्ति

का प्रतीक त्रिशुल है। महागौरी के ऊपर वाले हाथ में शिव का डमरू है। डमरू धारण करने के

कारण मां को शिवा के नाम से भी जाना जाता है। मां का नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में हैं और मां शांत मुद्रा में दृष्टिगित है। देवी के

इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं-

 

*सर्वमंगल मांग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।*

*शरण्ये तम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।*

 

*धन वैभव की अधिष्ठात्री देवी हैं महागौरी*

 

मां महागौरी अपने भक्तों के लिए अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। यह धन वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।

सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी है। देवी महागौरी को गायन-संगीत प्रिय है और यह सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। इन दिन कन्या पूजन का भी विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं,

लेकिन अष्ठमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता

है। कन्याओं की संख्या 9 हो, तो अति उत्तम है, नहीं तो दो कन्याओं के साथ भी पूजा की जा सकती है।

अष्टमी तिथि के दिन नारियल का भोग लगाने की परंपरा है। भोग लगाने के बाद नारियल प्रसाद रूप में बांट दें। वहीं जो भक्त कन्या पूजन करता है, वे हल्वा

पूडी, सब्जी और काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है।

 

*महागौरी का ध्यान मंत्र*

 

*श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः ।*

*महागौरी शुभं दद्यान्महादेवाप्रमोददा।।*

*या देवी सर्वभूतेष् मां गौरी रूपेण संस्थिता।*

*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

 

 

*महागौरी की पूजा विधि*

 

अष्टमी तिथि पर महागौरी की पूजा का विधान भी बाकी दिनों की तरह ही होता है। जिस तरह सप्तमी तिथि को माता की पूजा की जाती है, उसी तरह अष्टमी तिथि को भी शास्त्रीय विधि से पूजा की जाती है। इस दिन माता के कल्याणकारी “मंत्र ओम देवी

महागौर्ये नम: ” का जप करना चाहिए और मां को लाल चुनरी चढ़ानी चाहिए। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर महागौरी की मूर्ति या यंत्र रखकर तस्वीर स्थापित करें

मां की कांति भक्तों को सौंदर्य प्रदान करने वाली मानी जाती है। हाथ में सफेद फूल लेकर मां का ध्यान करें और फूल अ्पित करें और विधिवत पूजन करें। महागौरी को रात की रानी के फूल बहुत पसंद हैं।

 

 

*महत्वपूर्ण मंत्र*

*1. माहेश्वुरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना।*

*श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।*

*2. ओम देवी महागौर्यै नमः ।*

 

*मां महागौरी बीज मंत्र*

 

*श्री क्लीं हीं वरदायै नमः।*

 

*🙏 मां महागौरी की आरती*

 

जय महागौरी जगत की माया।

जया उमा भवानी जय महामाया।।

हरिद्वार कनखल के पासा।

महागौरी तेरा वहां निवासा।।

चंद्रकली और ममता अम्बे।

जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे।।

भीमा देवी विमला माता।

कौशिकी देवी जग विख्याता।।

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।

महाकाली दुगर्गा है स्वरूप तेरा।।

सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया।

उसी धुएं ने रूप काली बनाया।।

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।

तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।।

तभी मां ने महागौरी नाम पाया।

शरण आनेवाले का संकट मिटाया।।

शनिवार को तेरी पूजा जो करता।

मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।।

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।

महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो।।

बोलिए मां महागौरी की जै।

 

मां महागौरी की कृपा हम और आप सभी पर बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।

।।🙏जै माता दी 🙏।।

आलेख के लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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