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*पांचवें नवरात्र को मां स्कंदमाता की पूजा होती हैं,मूर्ख को विद्वान बनाने की शक्ति है स्कंदमाता में, आइए जानते हैं कथा, महत्व,शुभ मुहूर्त एवं आरती*
*शुभ मुहूर्त*
नैनीताल।19 अक्टूबर दिन गुरुवार को स्कंदमाता की पूजा होगी। इस दिन पंचमी तिथि 45 घड़ी 33 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:32 बजे तक है। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन जेष्ठा नामक नक्षत्र छत्तीस घड़ी 43 पल अर्थात रात्रि ठीक 9:00 बजे तक है ।सौभाग्य नामक योग एक घड़ी 15 पल अर्थात प्रातः 6:49 बजे तक है।बव नामक करण 16 घड़ी 30 पल अर्थात दोपहर 12:55 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव रात्रि 9:00 बजे तक वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्रदेव धनु राशि में प्रवेश करेंगे।
*स्कंदमाता की कथा-*
एक पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि एक तारकासुर
नामक राक्षस था। जिसका अंत केवल शिव पुत्र के हाथों ही
संभव था। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को
युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप लिया
था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय
ने तारकासुर का अंत किया था।
स्कंदमाता, हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी
के नाम से भी जाना जाता है। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने
के कारण पार्वती कही जाती हैं। इसके अलावा महादेव की
पत्नी होने के कारण इन्हें माहेश्वरी नाम दिया गया और अपने
गौर वर्ण के कारण गौरी कही जाती हैं। माता को अपने पुत्र रत्न से अति प्रेम है। यही कारण है कि मां को अपने पुत्र के नाम से
पुकारा जाना उत्तम लगता है। मान्यता है कि स्कंदमाता की
कथा पढ़ने या सुनने वाले भक्तों को मां संतान सुख और सुख-
संपत्ति प्राप्त होने का वरदान देती हैं।
*शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥*
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता है। नवरात्रि में
पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के
कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप
में इनकी गोद में विराजित हैं।
इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए
हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाई तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और
नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण
एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन में विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी
कहा जाता है। सिह इनका वाहन है।
*स्कंद माता की पूजा का महत्व*
शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है।
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र
रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की
आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती
है।
उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।
इस देवी में विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुई।
*स्कंदमाता की आरती*
जय तेरी हो स्कंद माता।
पांचवों नाम तुम्हारा आता।।
सबके मन की जानन हारी।
जग जननी सबकी महतारी।॥।
तेरी जोत जलाता रहू मैं।
हरदम तुझे ध्याता रहू मैं॥
कई नामों से तुझे पुकारा।
मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाडो पर है डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मंदिर में तेरे नजारे।
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इंद्र आदि देवता मिल सारे ।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।
तु ही खंडा हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी।
भक्त की आस पुजाने आयी॥
तो बोलिए स्कंदमाता की जै।
स्कंद माता की कृपा हम आप सभी पर बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ आपका दिन मंगलमय हो।
🙏।।जै माता दी।।🙏
✍️ आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।