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बहुत महत्वपूर्ण है अनवष्टका या नवमी श्राद्ध। इस बार महालय पक्ष में अन्वष्टका नवमी श्राद्ध 7 अक्टूबर को है-आचार्य पंडित प्रकाश जोशी

बहुत महत्वपूर्ण है अनवष्टका या नवमी श्राद्ध। इस बार महालय पक्ष में अन्वष्टका नवमी श्राद्ध दिनांक 7 अक्टूबर 2023 को है।

 

पुराणों में श्राद्ध के बारे में अनेक बातें लिखी गई है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्ध कृता को दीर्घायु संतति धन विद्या सुख राज्य आदि प्रदान करते हैं। इसी प्रकार कर्म पुराण में कहा गया है कि जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता है। बंधु बंधावों के साथ अन्न जल से किए गए श्राद्ध की तो बात ही क्या है केवल श्रद्धा प्रेम से साख के द्वारा किए गये श्राद्ध से भी पित्र तृप्त होते हैं। इसी प्रकार ब्रह्म पुराण में वर्णन है कि श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक किए गए श्राद्ध में पिंड ऊपर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यअवस्था में ही मर गए हो वह सम्मार्जन के जल से ही तृप्त हो जाते हैं। महर्षि सुमंतु के अनुसार श्राद्ध का महत्व यहां तक है कि श्राद्ध में भोजन से पूर्व जो आचमन किया जाता है उससे भी पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं।

महर्षि सुमंतु ने श्राद्ध के बारे में होने वाले लाभ के बारे में बताया है कि संसार में श्राद्ध से बढ़कर कोई कल्याणपर्द मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्न पूर्वक श्राद्ध करना चाहिए। देवताओं से भी पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। वायु पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण विष्णु पुराण तथा अन्य शास्त्रों में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है।

*माता-पिता मही चैव तथैवप्रपितामही*।

*पिता -पितामहीश्चैव तथैव प्रपितामह:* ।।

*माता महस्तत्पिता च प्रमातामहकादय:*।

*ऐतेवारं भवन्तु सुप्रीत: प्रयच्छन्तु च मंगलम*।

पितृ पूजन करने से परिवार में सुख शांति धन-धान्य यश वैभव लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है संतान सुख भी पितृ ही प्रदान करते हैं

 

शास्त्रों में पितरों को पित्र देव कहा जाता है। पितृ पूजन प्रत्येक घर के शुभ कार्य में भी सर्वप्रथम किया जाता है। जो की नांदी श्राद्ध या (आबदेव श्राद्ध) कहा जाता है।

एक महत्वपूर्ण बात पाठकों को और बताना चाहूंगा की तैतरीय संहिता के अनुसार पूर्वजों की पूजा अथवा श्राद्ध हमेशा दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में दिशाएं देवताओं मनुष्यों और रुद्र में बट गई थी जिसमें दक्षिण दिशा पितरों के हिस्से में आयी थी। एक महत्वपूर्ण बात और श्राद्ध में सात पदार्थ-गंगाजल, दूध, शहद ,तरस का कपड़ा ,दौहित्र ,कुश ,और तिल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। तुलसी से तो पितृ प्रलय काल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते हैं। इस पितृपक्ष की एक और पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में कर्ण का निधन हो गया था और उसकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई तो उन्हें वहां रोजाना खाने के बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए जाते थे इस बात से निराश होकर एक दिन कर्ण की आत्मा ने एक दिन इसका कारण इंद्रदेव से पूछ ही लिया की “हे इंद्रदेव!यहां मेरे साथ यह अन्याय और दुर्व्यवहार क्यों हो रहा है?”

इसके उत्तर में इंद्रदेव ने कहा कि आपने अपने जीवन में लोगों को धन और गहने आभूषण दान किया परंतु कभी अपने माता-पिता को भोजन नहीं दिया। तब कर्ण ने उत्तर दिया कि मैं अपने पूर्वजों के बारे में जानता ही नहीं हूं। कर्ण का उत्तर सुनने के बाद इंद्र ने उसे 16 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी में वापस जाने की अनुमति दी ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके तब से इन 16 दिनों की अवधि को 16 श्राद्ध के रूप में जाना जाता है और जिसमें अन्वष्टका श्राद्ध है या नवमी का श्राद्ध सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशीगेठिया नैनीताल।

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