Connect with us

Uncategorized

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनीय एकादशी कहते हैं,भगवान विष्णु परिवर्तनीय एकादशी पर लेंगे करवट- पंडित प्रकाश जोशी ।जानिये शुभ मुहूर्त, व्रत व पौराणिक कथा👇

 

नैनीताल।परिवर्तन का अर्थ है बदलाव पद्मा पुराण और भागवत पुराण के अनुसार इस समय भगवान की पूजा वामन रूप में करनी चाहिए।*इसलिए इस रूप की विधि विधान से पूजा करने से इस दिन परमार्थ की प्राप्ति होती है।* *इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन अवस्था में करवट बदलते हैं।* *इसलिए इस एकादशी को परिवर्तनीय एकादशी कहते हैं।

*शुभ मुहूर्त* – –

इस वर्ष परिवर्तनीय एकादशी व्रत शैव समुदाय के लोग दिनांक 25 सितंबर 2023 दिन सोमवार को परिवर्तनीय एकादशी व्रत मनाया जाएगा तथा वैष्णव समुदाय के लोग दिनांक 26 सितंबर 2023 दिन मंगलवार को परिवर्तनीय एकादशी व्रत मनाएंगे। यदि एकादशी तिथि की बात करें तो दिनांक 25 सितंबर 2023 दिन सोमवार को चार घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 7:56 बजे से एकादशी तिथि प्रारंभ होगी और 57 घड़ी 23 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 5:01 बजे तक रहेगी। इस दिन यदि नक्षत्र की बात करें तो उत्तराषाढ़ा नामक नक्षत्र 14 घड़ी 28 पल अर्थात दिन में 11:51:00 बजे तक है। यदि करण की बात करें तो इस दिन गर नामक करण चार घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 7:56 बजे तक है। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जानें तो इस दिन चंद्र देव पूर्ण रूपेण मकर राशि में विराजमान रहेंगे।

 

*पौराणिक कथा* – – – –

 

-परिवर्तनीय एकादशी व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है। जो भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इस कथा में धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से पूछने लगे की हे नंद नंदन! भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका महात्मय कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली एकादशी का महत्व मैं तुमसे कहता हूं सुनो। यह पदमा एकादशी परिवर्तन एकादशी या जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेई यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी वामन रूप की पूजा करता है उससे तीनो लोक पूज्य होते हैं। इसलिए मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमल नयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं वह अवश्य भगवान के समीप रहते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी व्रत और पूजन किया उसने ब्रह्मा विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। भगवान के वचन सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि भगवान मुझे अति संदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं।किस प्रकार राजा बलि को बांधा और वामन रूप रखकर क्या-क्या लीलाएं की? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है? तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप मुझसे विस्तार से बताइए। भगवान श्री कृष्ण कहने लगे कि हे राजन! आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करें। त्रेता युग में बलि नाम का एक दैत्य था , वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था। और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था। लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया। इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच विचार कर भगवान के पास गए। बृहस्पति सहित इंद्र आदि सभी देवता प्रभु के निकट जाकर नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। इसलिए मैंने वामन रूप धारण करके पांचवा अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया। इतनी बातें सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता? भगवान श्री कृष्ण कहने लगे मैंने वामन रूप धारी ब्रह्मचारी बनकर बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा कि यह तीन पग भूमि मेरे लिए तीन लोक के समान है और हे राजन! यह मुझको अवश्य देनी होगी। राजा बलि ने इसे तुच्छ याचना समझ कर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक की भूलोक में पद भू वलोक में जंघा स्वर्ग लोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। सूर्य चंद्रमा आदि सब ग्रह गण योग नक्षत्र इंद्र आदि देवता और शेषनाग आदि गणों ने विविध प्रकार के वेद मंत्रों से प्रार्थना की तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़ कर कहा कि हे राजन एक पैर से पृथ्वी दूसरे से स्वर्ग लोग पूर्ण हो गए अब तीसरा पग कहां रखूं? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बली मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। विरोचन के पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई।

इसी प्रकार दूसरी क्षीर सागर में शेषनाग के पृष्ठ पर हुई हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। इस दिन तांबा चांदी चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधि पूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो जो पाप नाशक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

 

*पूजा विधि* —

 

चातुर्मास में पड़ने वाली अन्य एकादशियों की भांति इस एकादशी को भी तुलसी वृंदावन के समीप पूजा करनी चाहिए। इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत होकर समीप के किसी नदी सरोवर या जल स्रोत में स्नान करना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो स्नान के जल में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। तदुत्प्रांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर तुलसी वृंदावन के सम्मुख आसान बिछाकर बैठ जाएं। सर्वप्रथम हाथ में जौं पुष्प और गंगाजल लेकर हरि: ॐ विष्णु विष्णु विष्णु आदि आदि अमुक गोत्र उत्पन्न (अपने गोत्र का उच्चारण करें) अमुक नाम्ने( अपने नाम का उच्चारण करें) भाद्रपद मासे शुक्ल पक्षे एकादशी व्रतं विधि पूर्वकं करिक्षे सहित एकादशी व्रत का संकल्प लें। तदुपरांत तुलसी वृंदावन के समीप एक चौकी में लाल या पीला वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर गंगाजल छिड़क कर उसमें भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। तदुपरांत मूर्ति को स्नान कराएं पंचामृत स्नान कराएं पुनः शुद्धोदक स्नान कराएं। भगवान विष्णु एवं माता को रोली चंदन चढ़ाएं अक्षत के स्थान पर जौं का प्रयोग करें। भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का शोडषोपचार पूजन करें। फलम समर्प्यामि भगवान को फल अर्पित करें। द्रव्यं समर्प्यामि द्रव्य अर्पित करें। तदुपरांत आरती के बाद तीन बार प्रदक्षिणा करें।

 

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad
Continue Reading
You may also like...

More in Uncategorized