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धर्म कर्म

नैनीताल में मोहर्रम पर शिया समुदाय के लोगों ने निकाला मातमी जुलूस,जानिये मुहर्रम क्यों अहम है इस्लाम धर्म के लोगो के लिये ।👇

नैनीताल सरोवर नगरी नैनीताल में शनिवार को मोहर्रम के मौके पर तल्लीताल में शिया समुदाय के लोगों ने मातमी जुलूस निकाला जो हरीनगर स्थित अफजल खान के घर से निकलकर मोटापानी स्थित इमामबाडे में जाकर संपन्न हुआ।

मातमी जुलूस में सदर ए आर खान, मंजूर हुसैन, फरमान खान, सरवर अली खान,गुलाम अली, रजब अली, रमजानी खान, अमजद खान, मुस्ताक खान, महमूद अली,खालिद आदि कई शिया समुदाय के लोग शामिल रहे।

बता दें कि मुहर्रम इस्लाम धर्म के लोगों का बहुत अहम है। पैगंबर मुहम्मद साहब के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों की शहादत को याद किया जाता है। कर्बला के शहीदों ने इस्लाम मजहब को नया जीवन प्रदान किया था। बताते चले कि आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका

विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह

घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। कारगिल से आए मौलाना सज्जाद हुसैन वह जौनपुर से आए मौलाना कुमेल अब्बास ने मजलिस

को खिताब फरमाया और उन्होंने बताया इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को यज़िद ने शहीद कर दिया गया था। मोहर्रम

बच्चों, महिलाओं सहित लोगों पर ढाए गए जुल्म व सितम की कभी न भूली जाने

वाली दर्द भरी दास्तां है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन सहित उनके मासूब बेटे

और साथियों को शहीद कर दिया गया था. इस्लामिक साल का पहला महीना मोहर्रम

शहादत का महीना माना जाता है किसी शायर ने खूब ही कहा है- कत्ले हुसैन

असल में मरग-ए-यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद !कर्बला

की जंग सिर्फ जुल्म के खिलाफ थी. कर्बला में हजरत इमाम हुसैन की शहादत ने

पूरी दुनिया में इस्लाम का बोलबाला कर दिया. मोहर्रम इस्लामिक साल का

पहला महीना कहलाता है. मुस्लिम मजहब में मुहर्रम का बहुत ही अहम है.

पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत

में मुहर्रम मनाया जाता है. इसमें शिया समुदाय के लोग इमाम हुसैन की

शहादत को याद कर शोक मनाते हैं. दरअसल, इस दिन को इस्लामिक कल्चर में

मातम का दिन भी कहा जाता है. क्योंकि नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72

साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ को जिंदा

रखने के लिए शहीद हो गए थे. तभी से मुहर्रम मनाया जाने लगा. 10वें दिन

रोज-ए-आशुरा मनाया जाता है जाता है।

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