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सूर्य ग्रहण – एक खगोलीय आश्चर्य- डॉ वीरेंद्र यादव, एरीज, नैनीताल, 25 अक्टूबर को नैनीताल से भी दिखेगा आंशिक सूर्यग्रहण
नैनीताल। कल्पना कीजिए कि धूप खिली है और आप बाहर घूम रहे हैं। अचानक से अँधेरा होने लगता है… इतना अँधेरा कि कुछ मिनटों के लिए आकाश में तारे और ग्रह भी दिखाई देने लगते हैं। फिर अँधेरा कम होने लगता है और जल्द ही फिर से धूप हो जाती है। यह सब 1.5 से 2 घंटों में खत्म हो जाता है। क्या ऐसा हकीकत में हो सकता है? जी हाँ यह हो सकता है, और यह होता भी है… एक पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान। मंगलवार 25 अक्टूबर, 2022 को एक आंशिक सूर्य ग्रहण होनेवाला है जो भारत के अधिकांश हिस्सों में दिखाई देगा। पूर्ण और आंशिक सूर्य ग्रहण में क्या अंतर है? सूर्य ग्रहण क्यों होता है? हम सूर्य ग्रहण कैसे देख सकते हैं? आइए इस लेख में ऐसे ही सवालों के बारे में और जानें।
सूर्य ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है जो सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के एक सीध में आने के कारण होती है। संयोगवश, चंद्रमा सूर्य से लगभग 400 गुना छोटा है, लेकिन सूर्य की तुलना में पृथ्वी के लगभग 400 गुना करीब है। नतीजतन, इन दोनों का आकार आकाश में लगभग एक समान दिखाई देता है। अतः जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच एकदम सीधी रेखा में आ जाता है, तो चंद्रमा की छाया पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों पर पड़ती है। इन क्षेत्रों में, चंद्रमा सूर्य को ढँक लेता है। चंद्रमा की गहरी छाया को प्रच्छाया कहा जाता है और हल्की छाया को उपछाया कहा जाता है, जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है (आकार और दूरी पैमाने पर नहीं हैं)। यदि आप हल्की छाया या उपछाया में हैं, तो चंद्रमा केवल आंशिक रूप से सूर्य को ढँकता है, जिससे आपको आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है और दिन का प्रकाश कुछ कम हो जाता है। दूसरी ओर, यदि आप गहरे रंग की छाया या प्रच्छाया में हैं, तो चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढँकता है, जिससे आपको पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है। चूँकि इसके दौरान बहुत ही कम उजाला होता है, तो आसपास और आकाश में अँधेरा हो जाता है और आपको तारे और ग्रह भी दिखाई देने लगते हैं। जैसा कि चित्र से पता चलता है, प्रच्छाया या पूर्ण सूर्य ग्रहण पृथ्वी के एक छोटे क्षेत्र से ही दिखाई देते हैं जबकि एक बड़े क्षेत्र से उपछाया या आंशिक सूर्य ग्रहण देखा जा सकता है।
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सूर्य ग्रहण का एक तीसरा प्रकार भी है – वलयाकार सूर्य ग्रहण। यह तब होता है जब चंद्रमा अपनी अण्डाकार कक्षा में पृथ्वी से ज़्यादा दूर हो और उसी दिन सूर्य ग्रहण भी हो। इसके कारण चंद्रमा आकाश में छोटा दिखाई देता है, जिससे यह सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढँक पाता और सूर्य का एक छोटा सा हिस्सा चंद्रमा के चारों ओर दिखाई देता है। इस स्थिति में ग्रहण लगा हुआ सूर्य एक पतले छल्ले या वलय के समान दिखाई देता है, इसलिए इसे वलयाकार ग्रहण कहा जाता है।
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हर साल 2-5 सूर्य ग्रहण होते हैं, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों से दिखाई देते हैं। अर्थात किसी एक जगह से कई वर्षों में औसतन केवल कुछ ही सूर्य ग्रहण दिखाई देते हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण तो और भी दुर्लभ हैं। भारतीय धरती से दिखाई देने वाला पिछ्ला पूर्ण सूर्य ग्रहण 22 जुलाई, 2009 को हुआ था और अगला 2034 में होगा। इन दोनों के बीच, भारत से कई आंशिक और वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखाई दिए और आगे भी दिखेंगे। सूर्य ग्रहण इतने दुर्लभ क्यों हैं?
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सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या पर ही हो सकता है, परन्तु सभी अमावस्याओं पर सूर्य ग्रहण नहीं होता है। हालाँकि अमावस्या पर चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में ही होता है, लेकिन सामान्यतः वे एकदम सीधी रेखा में नहीं होते। ऐसा इसलिए है क्योंकि पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा और सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा एक प्रतल में नहीं है। उनके बीच लगभग 5 डिग्री का कोण है। इसके कारण पूरे वर्ष में आकाश में चंद्रमा के पथ और सूर्य के आभासी पथ में 2 प्रतिच्छेदन बिंदु होते हैं। जिस बिंदु पर चंद्रमा सूर्य के आभासी पथ से ऊपर आता है, उसे आरोही या उत्तर पात कहा जाता है और जिस बिंदु पर यह नीचे जाता है, उसे अवरोही या दक्षिण पात कहा जाता है। इन दोनों पातों को प्राचीन भारतीय ज्योतिर्विज्ञान (ध्यान दें भविष्य बताने वाली ज्योतिषी नहीं!) में राहु और केतु के रूप में जाना जाता था। जब अमावस्या के दिन चंद्रमा इन दोनों पातों से दूर होता है, तो उसकी छाया पृथ्वी पर नहीं पड़ती और कोई सूर्य ग्रहण नहीं होता। केवल जब चंद्रमा दोनों बिंदुओं में से किसी एक के करीब होता है, तो सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी पर्याप्त रूप से एक सीधी रेखा में होते हैं जिससे चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है और हमें सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।
चूँकि सूर्य ग्रहण इतने दुर्लभ हैं, इसलिए वे छाया के खगोलीय खेल देखने के मनमोहक अवसर हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण एक अद्भुत और अद्वितीय दृश्य होता है! मुझे नहीं लगता कि किसी भी अन्य प्राकृतिक घटना की सुंदरता इसके आसपास भी होगी। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में सूर्य ग्रहण से जुड़े कई मिथक और अंधविश्वास प्रचलित हैं। कई लोगों में ऐसी गलत धारणाएँ हैं कि सूर्य ग्रहण नहीं देखना चाहिए, इसके दौरान बाहर नहीं जाना चाहिए, खाना बनाना या खाना नहीं चाहिए। तो क्या ऐसा करना सुरक्षित है? जी हाँ, बाहर जाना, खाना बनाना या खाना बिल्कुल सुरक्षित है। यदि आपके पास उचित उपकरण हों, तो सूर्य ग्रहण को अपनी आँखों से देखना भी सुरक्षित है। कृपया ध्यान दें कि सूर्य या सूर्य ग्रहण को नग्न आँखों, दूरबीन, बिना सौर फिल्टर लगे टेलिस्कोप, एक्स-रे फिल्म, दर्पण, लेंस या पानी में प्रतिबिंब के माध्यम से देखने पर आपकी आँखों को स्थायी रूप से नुकसान पहुँच सकता है। सूर्य ग्रहण देखने के लिए आपको सूर्य ग्रहण देखने के चश्मे, सौर फिल्टर लगे टेलिस्कोप या वेल्डर के काँच का उपयोग करना चाहिए।
यदि आपके पास इनमें से कुछ भी नहीं है, तो आप एक पिनहोल कैमरे, जिसे बनाना बहुत आसान है, के माध्यम से इसकी छवि को एक पटल पर प्रक्षेपित करके सूर्य ग्रहण का आनंद ले सकते हैं। यदि आप पिनहोल कैमरा नहीं बना सकते तो आप एक घने पेड़ के नीचे जमीन पर देख सकते हैं। पेड़ों की पत्तियों के बीच की जगह पिनहोल कैमरों की तरह काम करती हैं। आप इस उद्देश्य के लिए अनाज की छलनी का उपयोग भी कर सकते हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
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यदि आप 25 अक्टूबर को नैनीताल के आसपास होंगे, तो आप नैनीताल की मनोरा पीक पर स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), जिसे वेधशाला भी कहा जाता है, में आ सकते हैं। 25 अक्टूबर के आंशिक सूर्य ग्रहण को देखने के लिए हमने सूर्य ग्रहण देखने के चश्मों के साथ-साथ फिल्टर के साथ दूरबीन की व्यवस्था की हुई है। यदि आप एरीज नहीं आ सकते, तो आप हमारे फेसबुक पेज facebook.com/events/793213765246898 पर या यूट्यूब चैनल youtube.com/c/AriesNainitalUttarakhand पर हमारी लाइव स्ट्रीमिंग भी देख सकते हैं। आप अपने स्थानीय तारामंडल, विज्ञान केंद्र या खगोल विज्ञान क्लब से भी संपर्क कर सकते हैं जो सामान्यतः सूर्य ग्रहण देखने की सार्वजनिक व्यवस्था करते हैं।
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