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उत्तराखंड

नैनीताल में कुमाऊं की प्रसिद्ध ख़डी होली का अयोजन, जानिए कुमाऊं में होली की विशेषता, देखें वीडियो भी 👇

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रितेश सागर :

नैनीताल।सरोवर नगरी में होली की धूम अपने चरम पर है। जहाँ एक ओर लोक परम्परगत होली का चलन धीरे धीरे कम होता नजर आ रहा है वहीँ अपनी लोक परम्पराओ को बचाये रखने के प्रयास में नाट्य संस्था युगमंच की पहल पर चंपावत से आयी खड़ी होली की टीमों ने नयना देवी प्रांगण से होली की शुरुआत कर रंग जमाया, वहीं नगर की विभिन्न महिला टीमों ने भी और नयना देवी परिसर में स्वांग व बैठी होली से सभी को उत्साहित किया।

 

चंपावत खेती खान से डॉ. देवेंद्र ओली के नेतृत्व में आई “होली आयोजन नयना देवी मंदिर परिसर से खड़ी होली का शुभारम्भ

 

*जाके शीश में गंगा सुहाए, संभो तुम क्यों ना खेलो होली सदा,*

*जाके मस्तक चंदा छाए, संभो तुम क्यों ना खेलो होली सदा,*

सर्वप्रथम शिव को समर्पित करते हुए किया,

इसके बाद भोटिया बाजार, रामसेवक सभा  प्रांगण आदि स्थानों पर किया,उत्तराखंड की होली की अपनी अलग ही बात है जो की रागों पर आधारित होती है ढोल नगाड़ों की धुन और लय-ताल और नृत्य के साथ गाई जाने वाली खड़ी होली अपना विशेष स्थान रखती है। संगीत सुरों के बीच बैठकी होली के भक्ति, शृंगार, संयोग, वियोग से भरे गीत गाने की परंपरा काली कुमाऊं अंचल के गांव-गांव में चली आ रही है।

 

बता दें की एकादशी को रंगों की शुरूआत के बाद गांव-गांव में ढोल-झांझर और पैरों की विशेष कदम ताल के साथ खड़ी होली गायन चलता है। इसी दिन चीर बंधन के साथ शिव स्तुति से होली गायन शुरू किया जाता है। इसमें शिव के मन माहि बसे काशी…, हरि धरै मुकुट खेले होरी… शामिल है। भक्ति रसों, भक्ति, शृंगार आधारित होलियों का गायन छरड़ी तक किया जाता है। साथ साथ हंसी ठीठोली पर स्वांग धरने का भी चलन है।

कुमाऊं में साल 1850 से बैठकी होली गायन चला आ रहा है ये पर्व खुशी, उत्साह और ऋतु परिवर्तन का भी प्रतीक माना जाता है मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को होलिका एवं प्रहलाद के प्रसंग से भी जोड़ा जाता है लेकिन होली का मनोविनोद, गीत संगीत, मिलना, रंग खेलना एक पक्ष है तो होलिका दहन दूसरा। कुमाऊं की होली गीतों से जुड़ी है, जिसमें खड़ी व बैठकी होली ग्रामीण अंचल की ठेठ सामूहिक अभिव्यक्ति है।

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